शाश्वत तिवारी
भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर 5-6 अगस्त को दो दिवसीय दौरे पर ईरान पहुंचे, जहां वह ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए गए थे। वैसे तो उनकी इस यात्रा को ईरान के निमंत्रण वाली बताई जा बताई जा रही है, लेकिन एक महीने में जयशंकर की दूसरी ईरान यात्रा को लेकर कूटनीतिक गलियारों में कई मायने निकाले जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकर भारत-ईरान संबंध और अफगानिस्तान को लेकर भारत की रणनीति के हिसाब से जयशंकर की इस यात्रा को बेहद महत्वपूर्ण बता रहें हैं।
2001 से भारत, अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में सहयोग कर रहा है। अफगानिस्तान में चल रही बांध और सड़क जैसी कई परियोजनाओं में भारत अब तक 139 अरब रुपये का निवेश कर चुका है। भारत द्वारा बनाया गया चाबहार बंदरगाह जिस जगह पर स्थित है, वो रणनीतिक लिहाज से भी काफी महत्व्पूर्ण है। इस बंदरगाह से भारत को ईरान के अलावा अफगानिस्ता न, उजबेकिस्ताीन और सेंट्रल एशिया के देशों तक रास्तार मुहैया होता है। यही नहीं बंदरगाह से अफगानिस्तान को जोड़ने वाला जरांज-देलाराम हाईवे का निर्माण भी भारत ने किया है। इस परियोजना का एक भाग पूरा हो चुका है और वहां अच्छा ट्रैफिक भी आ रहा है। इससे ईरान का ट्रेड भी बढ़ रहा है। पहले जो जहाज़ कराची जाते थे, अब वे चाबहार होकर आगे जा रहे हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो आफगानिस्तान में भारत और ईरान के संयुक्त आर्थिक हित जुड़े हुए हैं।
रईसी के शपथ ग्रहण समारोह में 73 देशों के 115 अधिकारी, जिसमें 10 राष्ट्राध्यक्ष, 11 विदेश मंत्री और 10 दूसरे मंत्री भी शामिल हुए। भारतीय विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि ”इस समारोह में भारत की तरफ से भी पहले किसी अन्य मंत्री को भारत का प्रतिनिधि बनाकर भेजने की योजना थी, लेकिन जयशंकर को भेजने का फैसला अफगानिस्तान जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर दोनों देशों के बीच एक समान विचार को दर्शाता है।” वैसे तो ईरान ने कभी तालिबान का खुला समर्थन नहीं किया है, लेकिन उसने कभी-कभी तालिबान और अफगान सरकार के प्रतिनिधियों के बीच शांति वार्ता की मेजबानी जरूर की है। कुछ दिनों पहले अफगान सरकार और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच तेहरान में हुई वार्ता के बाद ईरान ने स्पष्ट कहा था कि वह अफगानिस्तान में जारी संकट को सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है। इससे यहा बात साफ हो जाती है कि अफगानिस्तान में जारी सत्ता संघर्ष में ईरान की भी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।
चार देशों के विदेश मंत्रियों से जयशंकर ने की मुलाकात:
रईसी के शपथ ग्रहण से इतर विदेश मंत्री जयशंकर ने कुवैत, निकारगुआ, बॉलीविया और ओमान के अपने समकक्षों से भी भेंट की। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि कुवैत के विदेश मंत्री डॉ. अहमद नास्सेर अल सबह से मुलाकात कर खुश हैं। कोविड के बाद के आर्थिक एवं स्वास्थ्य सहयोग पर चर्चा को आगे ले जाया गया। क्षेत्रीय घटनाक्रम पर विचारों का सार्थक आदान-प्रदान हुआ। एक अन्य ट्वीट में जयशंकर ने निकारगुआ के विदेश मंत्री डेनिस रोनाल्डो मोनकाडा कोलिनड्रे के सकारात्मक रुख की प्रशंसा की। बॉलीविया के विदेश मंत्री से रोगेलियो मायटा के साथ मुलाकात के बाद जयशंकर ने ट्वीट कर कहा कि भारत एवं बॉलीविया के बीच विकास साझेदारी एवं बहुपक्षीय सहयोग पर चर्चा की। अपने ओमानी समकक्ष बद्र अलबुसैदी के साथ मुलाकात के बाद जयशंकर ने ट्वीट कर कहा कि भारत की मजबूत द्विपक्षीय साझेदारी, जीसीसी विकास और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की। उनके (ओमानी समकक्ष) साथ निकटता से काम करने के लिए तत्पर हूं।