कांग्रेस यूपी चुनाव में ताकत बनने के लिए बसपा और रालोद को साथ लाना चाहती है पर पंजाब में दोनों ही पार्टियां करीब 18 सीटों पर आमने-सामने है। ऐसे में चाहते हुए भी गठबंधन आकार नहीं ले पा रहा है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए नया गठबंधन तैयार करने की कांग्रेस की मुहिम को झटका लगा है। बसपा यूपी में कांग्रेस के साथ आने को तैयार नहीं है। इसके लिए जहां पुराने अनुभव को सामने रखा जा रहा है तो वहीं अहम रोड़ा पंजाब का चुनाव है जिसमें कांग्रेस और बसपा आमने-सामने हैं। ऐसे में यूपी में इस तरह का गठबंधन दूर की कौड़ी लग रहा है।
यूपी में कांग्रेस नए साथियों की तलाश में है। इसकी झलक दिखी 31 अक्तूबर को जब रालोद प्रमुख चौधरी जयंत सिंह की कांग्रेस से नजदीकियां नजर आईं। लखनऊ से दिल्ली लौटते समय जयंत सपा प्रमुख अखिलेश यादव की फ्लाइट छोड़कर कांग्रेस के निजी विमान से प्रियंका गांधी के साथ दिल्ली लौटे। चर्चा रही कि कांग्रेस की ओर से जयंत को पंजाब में सीटों से लेकर राज्यसभा भेजने तक का ऑफर दिया गया। सीधे तौर पर जयंत ने इससे इंकार भी नहीं किया पर मशक्कत यह थी यह गठबंधन तभी परवान चढ़ सकेगा जब इसमें बसपा भी शामिल हो।
पंजाब में 20 सीटों पर लड़ेगी बसपा, 18 पर कांग्रेस से सीधा मुकाबला
कांग्रेस-बसपा गठबंधन न होने का बड़ा कारण है पंजाब विधानसभा चुनाव जो यूपी के साथ ही होने जा रहा है। वहां बसपा का शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन है। 117 सीटों में से शिरोमणि अकाली दल ने 20 सीटें बसपा को दी हैं। इन सभी सीटों पर बसपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से हैं। इनमें से 18 सीटों पर तो हाल में कांग्रेस के ही विधायक हैं। हालांकि, सीटों के बंटवारे को लेकर पंजाब में भी असंतोष है। कुछ बसपाई कह रहे हैं कि अकाली दल ने ऐसी सीटें बसपा को दी हैं, जिनपर बसपा का जनाधार कम है। इनमें पचास प्रतिशत सीटों पर तो उसका काडर वोटर बेहद कम है।
अदावत के तीन कारण
पहला : पंजाब और लखीमपुर में कांग्रेस का पैंतरा
दलितों पर दांव को लेकर बसपा कांग्रेस से अदावत मानकर चल रही है। इनमें अहम कारण यह है कि पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने वहां बड़ा दलित कार्ड खेला जबकि वहां कांग्रेस व बसपा आमने-सामने हैं। इतना ही नहीं, लखीमपुर खीरी में चन्नी की जबरदस्त आमद कराई गई और उन्होंने यहां तिकुनिया प्रकरण के पीड़ित किसानों को 50-50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी। बसपा मानकर चल रही है कि कांग्रेस का यह निशाना पूरी तरह से बसपा के काडर वोटर को साधने के लिए है।
दूसरा : भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर से प्रियंका की मुलाकात
मार्च 2019 में प्रियंका गांधी अचानक भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद से मिलने अस्पताल पहुंच गई थीं। दरअसल चंद्रशेखर ‘बहुजन अधिकार यात्रा’ निकाल रहे थे। अचानक तबीयत खराब होने पर उन्हें मेरठ के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां अचानक प्रियंका गांधी तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर व तत्कालीन पश्चिमी यूपी प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को साथ लेकर उनसे मिलने पहुंच गईं और कहा कि चंद्रशेखर का संघर्ष उन्हें पसंद आया। बसपा मानकर चल रही है कि चंद्रशेखर से उनकी यह मुलाकात अनायास नहीं बल्कि बसपा के खिलाफ सुनियोजित थी।
तीसरा : 2024 लोकसभा चुनाव
बसपा की निगाह इस विधानसभा चुनाव के साथ-साथ वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी है। बसपा थिंक टैंक को लग रहा है कि इस चुनाव में यदि कांग्रेस से हाथ मिलाया गया तो इसके दूरगामी प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में कहीं उसका काडर वोटर उससे छिटक न जाए क्योंकि भाजपा भी पूरी तरह से उसके वोटर को रिझाने की कोशिश में है। ऐसे में उसको नुकसान हो सकता है।