देश में एक बार फिर से दलित राजनीति गर्म हो गई हैं,उसकी वज़ह है पंजाब। कांग्रेस ने बड़ा फेरबदल करते पंजाब में प्रथम बार किसी दलित के हाथों में सत्ता की बागडोर सौंपी है। कैंप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया है। पंजाब में पहली बार किसी दलित को राज्य की बागडोर सौंपी गई है और वर्तमान में देश में एकलौते दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी हैं। चरणजीत सिंह कैंप्टन सरकार में रोज़गार और तकनीक शिक्षा मंत्री थे। चन्नी रूपनगर ज़िले के चनकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक हैं। चरणजीत सिंह चन्नी 2007 से लगातार इस सीट से विधायक बनते आ रहे हैं। चन्नी 2015-16 में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।
हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है जब किसी दलित समुदाय के व्यक्ति के हाथों में किसी राज्य की बागडोर सौंपी गई हों। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में भी दलित समुदाय के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जा चुका हैं। कई राज्यों में दलित समुदाय से उपमुख्यमंत्री भी बनाए गए हैं। आइये नज़र डालते हैं देश में अब तक रहें दलित समाज से मुख्यमंत्रियों पर।
दामोदरम संजिवैय्या आज़ाद भारत के पहले दलित समाज से मुख्यमंत्री रहे। दामोदरम संजिवैय्या कांग्रेस सरकार में 11 जनवरी 1960 से लेकर 12 मार्च 1962 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। दामोदरम संजिवैय्या आंध्र प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने। 1962 में दामोदरम को दलित समुदाय से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अध्यक्ष भी बनाया गया।
दामोदरम संजिवैय्या का मुख्यमंत्रित्व काल केवल दो वर्ष का रहा। दामोदरम लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में 1964 से 1966 तक श्रम एवं रोजगार मंत्री भी रहे। इससे पहले मद्रास राज्य सरकार में वे मंत्री भी रहे। दामोदरम संजिवैय्या 1950-52 में अंतरिम सरकार में संसद सदस्य भी थे।
दामोदरम संजिवैय्या का जन्म आंध्र प्रदेश के कुरनूल ज़िले के एक गांव में हुआ था। दामोदरम एक मज़दूर के बेटे थे। दामोदरम की युवा अवस्था में ही उनके पिता का निधन हो गया था। दामोदरम ने गांव के ही स्कूल से पढ़ाई करी, इसके बाद उन्होंने 1948 में मद्रास ला कालेज से कानून की पढ़ाई करी। दामोदरम संजिवैय्या अपने कालेज के दिनों से ही भारत की आज़ादी में शामिल रहें। भारतीय डाक ने 14 फरवरी 2008 को उनके सम्मान में एक पांच रुपए का डाक टिकट भी जारी किया था।
भोला पवन शास्त्री बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री थें। भोला पासवान शास्त्री बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री बने लेकिन तीनों बार उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा। साल 1967 में भोला पासवान पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। कांग्रेस ने उन्हें दलित नेता के तौर पर आगे किया और 22 मार्च 1968 को वो गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन गठबंधन की ये सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चली और तीन महीने बाद ही भोला पासवान शास्त्री की भी कुर्सी चली गई थी, भोला पासवान के पास से भले ही कुर्सी जा चुकी थी ,लेकिन बिहार की राजनीति में वो अपनी जगह बना चुके थे।
इसके बाद भोला पासवान दो बार और मुख्यमंत्री बने,
दूसरी बार 13 दिन के सीएम 1969 में और तीसरी बार में उन्होंने 222 दिन के मुख्यमंत्री के तौर पर पारी खेली जून 1971 से लेकर जनवरी 1972 तक। भोला पासवान चार बार बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहें। 1972 में भोला पासवान बिहार से राज्यसभा सांसद बनाए गए और 1973 में इंदिरा गांधी सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया। हालांकि कुछ समय बाद ही उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया था। देश में जब पहली पहली बार अनुसूचित जनजाति आयोग बना तो वो उसके पहले चेयरमैन थे।
सन् 1914 में बिहार के पूर्णिया जिले के बैरगाछी गांव में भोला पासवान शास्त्री का जन्म हुआ था। भोला पासवान शास्त्री एक बेहद ईमानदार और देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी थे। वह महात्मा गांधी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सक्रिय हुए थे। कहा जाता है कि बहुत ही गरीब परिवार से आने के बावजूद वह बौद्धिक रूप से काफी सशक्त थे।
तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद भोला पासवान ने सुख-सुविधाओं से इनकार किया। वह झोपड़ी में ही रहते थे और ज़मीन पर ही सोते थे। कहा जाता है कि वह इतने ईमानदार थे कि तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उन्होंने अपने लिए कुछ न किया। भोला पासवान ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी। उसके बाद से ही वे राजनीति में सक्रिय हो गए थे। बताया जाता है कि भोला पासवान के परिवार के लोग मज़दूरी करके पेट भरते हैं। भोला पासवान का निधन 1984 में हुआ था।
रामसुंदर दास बेहद स्वच्छ छवि एवं ईमानदार व्यक्तित्व के नेता रहें। उनके पूरे राजनीतिक जीवन में कभी कोई आरोप या कोई विवाद नहीं रहा। रामसुंदर दास पहली बार जनता पार्टी से 1965 में एमएलसी बनें, इसके बाद वो 1977 में सोनपुर से विधायक निर्वाचित हुए थे। वे इस वक्त जनता पार्टी के बिहार अध्यक्ष भी रहें।
इसके साथ ही 1979 से 1980 तक बिहार की जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री रहे। फिर 1990 में जनता दल के पातेपुर से विधायक निर्वाचित हुए। वहीं 1991 में जेडीयू से हाजीपुर से सांसद चुने गए। दोबारा 2009 में जेडीयू से हाजीपुर से सांसद बने। 2014 में वे लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान से चुनाव हार गए।
रामसुंदर दास 1921 में सारण जिले के सोनपुर में पैदा हुए थे। दास अपनी पढ़ाई सोनपुर से ही पूरी करी और फिर कलकत्ता के विद्यासागर कालेज में दाखिला लिया और स्वाधीनता आंदोलन के चलते उनको कालेज छोड़ना पड़ा। रामसुंदर दास महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वाधीनता आंदोलन में कूद थे। 2015 में रामसुंदर दास का 94 साल की उम्र में निधन हो गया।
जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान के प्रथम दलित मुख्यमंत्री थे। जगन्नाथ पहाड़िया कांग्रेस शासनकाल में 6 जून 1980 से 14 जुलाई 1981 मात्र 13 महीनों के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। 1957 में जगन्नाथ पहाड़िया पहली बार सवाई माधोपुर सीट से चुनाव लड़े और लोकसभा पहुंचे और लोकसभा के सबसे युवा सांसद रहे। जगन्नाथ पहाड़िया 4 बार सांसद और 4 बार विधायक रहे, पहाड़िया सन् 1957,1967,1971 & 1980 में चार बार सांसद रहे और वैर विधानसभा से 1980,1985,1999,& 2003 में 4 बार विधायक रहे और साथ ही 1989 से 1990 तक बिहार के राज्यपाल रहे, 2009 से 2014 तक हरियाणा के राज्यपाल भी रहे।
जगन्नाथ पहाड़िया लगातार तीन बार बयाना चौथी, पांचवीं, सातवीं लोकसभा में सांसद रहें। जगन्नाथ पहाड़िया की पत्नी शांति पहाड़िया भी लोकसभा सांसद रहीं। जगन्नाथ पहाड़िया मात्र 25 वर्ष की उम्र में राजनीति में प्रवेश कर कांग्रेस से सांसद बने। कहा जाता है कि राजस्थान में पूर्ण रूप से शराब बंदी करने वाले प्रथम मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया रहे। जगन्नाथ पहाड़िया इंदिरा गांधी और संजय गांधी के बेहद करीबियों में शामिल थे। पहाड़िया इंदिरा गांधी कैबिनेट में मंत्री भी रहे थे। उनके पास वित्त, उद्योग, श्रम, कृषि जैसे विभाग थे।
1980 में पहाड़िया केवल 13 महीने मुख्यमंत्री रहे थे। उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का किस्सा भी काफी रोचक है। जयपुर में लेखकों के एक सम्मेलन में सीएम के तौर पर पहाड़िया को बुलाया गया था। उस कार्यक्रम में छायावाद की कविताओं के लिए मशहूर कवयित्री महादेवी वर्मा भी मौजूद थीं।
पहाड़िया ने महादेवी वर्मा की कविताओं के बारे में कहा था, ‘महादेवी वर्मा की कविताएं मेरे कभी समझ नहीं आईं कि वे क्या कहना चाहती हैं। उनकी कविताएं आम लोगों के सिर के ऊपर से निकल जाती हैं, मुझे भी कुछ समझ में नहीं आतीं। साहित्य आम आदमी को समझ आए ऐसा होना चाहिए’।
बताया जाता है कि पहाड़िया की इस टिप्पणी के बारे में महादेवी वर्मा ने इंदिरा गांधी से शिकायत की थी और उसके बाद पहाड़िया को सीएम पद छोड़ना पड़ा था। कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि महादेवी वर्मा की कविताओं पर टिप्पणी तो बहाना था। उन्हें हटाने की असली वजह तो उनका विरोध होना था।
जगन्नाथ पहाड़िया का जन्म 1932 में राजस्थान के भरतपुर में हुआ था। जगन्नाथ पहाड़िया ने जयपुर के महाराजा कालेज से एमए, कानून की पढ़ाई की। पहाड़िया की गिनती कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में होती थी। पहाड़िया कांग्रेस संगठन में भी कई पदों पर रहें थे। इसी वर्ष मई में कोविड के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी।
जीतन राम मांझी जदयू के नेता के तौर पर 23वें मुख्यमंत्री रहें। जीतन राम मांझी बिहार में दलित समुदाय से तीसरे मुख्यमंत्री रहे। जीतन राम मांझी मात्र 10 महीने के लिए मुख्यमंत्री बने, विवाद के चलते इनको फरवरी 2015 में हटा दिया गया। जीतन राम मांझी कई राजनैतिक दलों में रहें। वो 1980 से 1990 तक कांग्रेस में रहें, 1990 से 1996 तक जनता दल में रहें, 1996 से 2005 तक राष्ट्रीय जनता दल में रहें और फिर 2005 से 2015 तक जदयू में रहें। जदयू से निष्कासित होने के बाद जीतनराम मांझी ने हिंदुस्तान अवाम मोर्चा का गठन करा।
सन् 1980 में कांग्रेस के टिकट पर जीतन राम मांझी ने प्रथम बार गया ज़िले की फतेहपुर सीट से चुनाव लड़ा और जीता और चंद्रशेखर की सरकार में मंत्री बने। 1985 में मांझी फिर से इसी सीट से चुनाव जीते लेकिन 1990 में वे चुनाव हार गए। 1980-1990 के बीच में कांग्रेस सरकार में कई विभाग के कैबिनेट मंत्री रहें।
1990 में चुनाव हारने के बाद मांझी कांग्रेस छोड़ जनता दल में शामिल हो गए लेकिन 1996 में वे लालू प्रसाद यादव के साथ राष्ट्रीय जनता दल में आ गए। 1996 में मांझी आरजेडी से बाराचट्टी उप चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। सन् 2000 में भी आरजेडी के टिकट पर बाराचट्टी से चुनाव जीते। 1996-2005 के आरजेडी के शासनकाल में मांझी शिक्षा विभाग के कैबिनेट मंत्री पद पर रहें।
सन् 2005 में आरजेडी के विधानसभा चुनाव के दौरान मांझी जदयू में शामिल हो गए। 2005 विधानसभा चुनाव में वे जदयू के टिकट पर बाराचट्टी से चुनाव जीते। उन्हें नीतीश कुमार सरकार में भी शामिल किया गया। लेकिन आरजेडी सरकार में मंत्री पद पर रहते उनपर ग़लत कार्य में लिप्त रहने का आरोप लगा जिसके बाद मांझी को नीतीश सरकार में मंत्री पद से हटा दिया गया। लेकिन 2008 में आरोप मुक्त होने के बाद उन्हें दोबारा नीतीश सरकार में शामिल कर लिया गया।
2010 विधानसभा चुनाव में मांझी जहानाबाद की मख्दूमपुर विधानसभा से चुनाव जीते। मांझी नीतीश के बेहद करीबी बन गए। इसी का नतीजा रहा कि 2014 में नीतीश ने सीएम के पद से इस्तीफा देकर अपनी कुर्सी उन्हें सौंपी। हालांकि जब नीतीश ने बाद में उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा तो वो चुनौती बनकर उनके सामने खड़े हो गए। 10 महीने के बाद पार्टी ने उनसे नीतीश कुमार के लिये पद छोड़ने को कहा। ऐसा न करने के कारण उनको पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। 20 फरवरी 2015 को बहुमत साबित न कर पाने के कारण उन्होनें इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद मांझी ने हिंदुस्तान अवाम मोर्चा का गठन किया और भाजपा गठबंधन में शामिल हो गए।
बिहार के गया जिला के खिजरसराय के महकार गांव के मुसहर जाति में 6 अक्टूबर 1944 को जीतन राम मांझी का जन्म हुआ। मुसहर जाति के लोग चूहा पकड़ने और उन्हें खाने के लिए जाने जाते हैं। उनके पिता रामजीत राम मांझी एक खेतिहर मजदूर थे। जीतन राम मांझी को भी बचपन में जमीन मालिक द्वारा खेतों में काम पर लगा दिया जाता था, लेकिन उनके मन में ललक ने उन्हें काबिल बनाया। जीतन राम मांझी की शिक्षा की बात करें तो 1962 में उच्च विद्यालय में शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1967 में गया कॉलेज से इतिहास विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की।
गरीब परिवार से आने वाले मांझी को 1968 में डाक एवं तार विभाग में लिपिक की नौकरी मिली, लेकिन 12 साल डाक विभाग में नौकरी करने के बाद 1980 में छोड़ दी। इसके बाद कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया और आंदोलन का हिस्सा बन गए, जिसमें ‘आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे’ के नारे बुलंद करने लगे। वर्तमान में जीतनराम मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन एमएलसी हैं और नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।
सुशील कुमार शिंदे कांग्रेस के बड़े नेताओ में गिने जाते हैं। वे पाँच बार महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य चुने गए और राज्यमंत्री से लेकर वित्तमंत्री और एकमात्र दलित जो मुख्यमंत्री तक पद पर रहे। एक बार महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 1992 में कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा में भेजने का निर्णय लिया। यहाँ उन्हें सोनिया गांधी के नज़दीक जाने का मौक़ा मिला और इसी की वजह से 1999 में उन्हें अमेठी में सोनिया गांधी का प्रचार संभालने का मौक़ा मिला।
1999 में वे लोकसभा के लिए चुने गए फिर सोनिया गांधी के निर्देश पर वर्ष 2002 में उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार भैरोसिंह शेखावत के ख़िलाफ़ उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और हार गए। जब केंद्र में 2004 में जब यूपीए की सरकार आई तो उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेजा गया लेकिन एक साल बीतते बीतते उन्होंने यह पद भी छोड़ दिया। 2006 में वो एक बार फिर राज्यसभा के सदस्य बने और फिर ऊर्जा मंत्री. 2009 में चुनाव में दूसरी बार ऊर्जा मंत्री बनाए गए और 31 जुलाई, 2012 को गृहमंत्री बनें। सुशील कुमार शिंदे मनमोहन सरकार में लोकसभा में नेता सदन भी रहें।
दलित समुदाय से आने वाले सुशील कुमार शिंदे ने 1971 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करी। सुशील कुमार शिंदे सोलापुर से पांच बार विधायक रहे। शिंदे कांग्रेस से सन् 1974, 1980, 1985, 1990,1992 में विधानसभा जीतकर पहुंचे। 18 जनवरी 2003 से लेकर 4 नवंबर 2004 तक वे महाराष्ट्र के 15वे मुख्यमंत्री रहें। शिंदे महाराष्ट्र के पहले दलित मुख्यमंत्री कांग्रेस शासनकाल में बनें। इसी बीच वो महाराष्ट्र के कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे।
सुशील कुमार शिंदे 1992 से लेकर 1998 तक कांग्रेस से राज्यसभा सांसद रहें। शिंदे को कांग्रेस ने 2002 में यूपीए की तरफ़ से उप राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाया लेकिन वे एनडीए के भैरों सिंह शेखावत से हार गए। केंद्र में 2004 में यूपीए की सरकार आई तो उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेजा गया लेकिन उन्होंने एक साल में ही पद छोड़ दिया। 2006 में वो एक बार फिर राज्यसभा के सदस्य बने और फिर ऊर्जा मंत्री। 2009 के चुनाव के बाद दूसरी बार ऊर्जा मंत्री बनाए गए लेकिन 2012 में उन्हें देश के गृह मंत्रालय की कमान सौंपी गई। 2014 और 2019 में शिंदे कांग्रेस से सोलापुर से लोकसभा का चुनाव लड़ें लेकिन दोनों बार बीजेपी से हार का सामना करना पड़ा।
शिंदे जब गृहमंत्री थे तब दो बड़े आतंकवादियों अफ़ज़ल गुरु और अजमल कसाब को फांसी दी गई। शिंदे जब ऊर्जा मंत्री थे तब उत्तरी, पूर्वी और पूर्वोत्तर पॉवर ग्रिड के फेल हो जाने से देश का आधे से ज़्यादा हिस्सा अंधेरे में डूबा गया था। सैकड़ों ट्रेनें यहाँ वहाँ अटकी हुई थीं और औद्योगिक उत्पादन ठप पड़ा गया था। उस समय शिंदे की काफी आलोचना भी हुई थी तभी केन्द्र सरकार ने उन्हें पदोन्नति देते हुए गृहमंत्री भी बना दिया था।
शिंदे का जन्म 4 सितम्बर 1941 को महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ था। उन्होंने दयानंद कॉलेज, से आर्ट्स में ऑनर्स डिग्री ली थी और बाद में शिवाजी यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री भी हासिल की। शिंदे ने अपना करियर सोलापुर सेशन कोर्ट में एक नाजिर के तौर पर शुरू किया था लेकिन बाद में वे राज्य पुलिस में सब इंस्पेक्टर बन गए थे। शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने वाले पहले दलित नेता हैं। शरद पवार के आग्रह पर वे पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थे। सुशील कुमार शिंदे की बेटी प्रणीति शिंदे वर्तमान में सोलापुर से कांग्रेस की विधायक हैं।
मायावती देश की पहली महिला दलित मुख्यमंत्री बनी थी। मायावती वर्तमान में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। सन् 1977 में मायावती कांशीराम के सम्पर्क में आई और फिर उन्होंने कांशीराम के संरक्षण में काम करने का फैसला किया, मायावती कांशीराम के बहुजन मूवमेंट की कोर कमेटी का हिस्सा बन गई। सन् 1984 में कांशीराम ने बसपा की स्थापना करी।
सन् 1984 में बसपा ने मायावती को कैराना लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव में उतारा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सन् 1986 और 1987 में क्रमश बिजनौर और हरिद्वार लोकसभा से हार का सामना करना पड़ा। सन् 1989 में बिजनौर लोकसभा से संसद सदस्य निर्वाचित हुईं। मायावती ने बिजनौर लोकसभा का चुनाव 8,879 वोटों के अंतर से जीता था। मायावती 1994 में उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुईं।
1995 में ही मायावती ने देश की प्रथम दलित महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। मायावती 3 जून 1995 से 18 अक्टूवर 1995 तक मुख्यमंत्री रहीं। 21 मार्च 1997 से 20 सितम्बर 1997 तक एक बार फिर वो समाजवादी पार्टी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं। 3 मई 2002 से 26 अगस्त , 2003 तक वो भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी, लेकिन गठबंधन की सरकार गिर गई। 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने यूपी विधानसभा में मायावती के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत हासिल किया और मायावती पांच साल के लिए मुख्यमंत्री बनीं।
1998 में मायावती यूपी के अकबरपुर से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंची। 2002 में मायावती यूपी विधानसभा की सदस्य निर्वाचित हुईं जिसके चलते उन्हें अकबरपुर लोकसभा से इस्तीफा देना पड़ा। सरकारी गिरने के कारण मायावती को विधानसभा से इस्तीफा देना पड़ा। 2004 में मायावती फिर से अकबरपुर लोकसभा से सांसद का चुनाव जीती। लेकिन इस्तीफा देकर दूसरी बार राज्यसभा की सदस्य बनीं। 2007 में मुख्यमंत्री बनने के चलते उन्होंने राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया। मायावती 2003 में बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष बनीं। 2012 विधानसभा चुनाव में बसपा को समाजवादी पार्टी से विधानसभा चुनाव में मात खानी पड़ी जिसके बाद मायावती ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 2012 में मायावती राज्यसभा की संसद निर्वाचित हो गई।
मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली के में हुआ था। उनके पिता प्रभु दास गौतम बुद्ध नगर में एक डाकघर कर्मचारी थे। मायावती के 6 भाई एवं 2 बहनें हैं। मायावती ने 1975 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कालेज से कला में स्नातक की। 1976 में उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से बी॰एड॰ और 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एल॰एल॰बी॰ की पढ़ाई की। राजनीति में प्रवेश से पूर्व वे दिल्ली के एक स्कूल में शिक्षण कार्य करती थी। इसके अलावा वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के परीक्षाओं के लिये अध्ययन भी करती थी। मायावती देशभर में ‘बहन जी’ के नाम से जानी जाती है।
कांग्रेस नेतृत्व द्वारा कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया है। चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब राज्य के पहले दलित सिख समुदाय से मुख्यमंत्री हैं। चन्नी चमकौर साहिब विधानसभा सीट से विधायक हैं। साल 2007 में चन्नी ने पहली बार विधानसभा का चुनाव चमकौर साहिब से ही जीता था और वो भी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन्हें कांग्रेस में शामिल करा लिया। साल 2012 का विधानसभा चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीता। कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में चन्नी टेक्नीकल एजुकेशन और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग, पर्यटन और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री थे। चन्नी 2015-2016 में पंजाब विधानसभा में कांग्रेस की ओर से नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी थे।
चरणजीत सिंह चन्नी का जन्म 1 मार्च 1963 को चमकौर साहिब में हुआ था। चन्नी के पिता टेंट लगाने का काम करते थे। चन्नी भी अपने पिता का टेंट लगवाने में हाथ बंटाते थे। चन्नी की राजनीति की शुरुआत 1996 में प्रधान से हुई, वे दो बार नगर परिषद खरड़ के प्रधान रहे। इसके बाद तीन बार पार्षद रहे। चन्नी ने चंडीगढ़ के गुरुगोविंद सिंह खासला कॉलेज से पढ़ाई की और फिर पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी किया। इसके बाद चन्नी ने पंजाब टेक्नीकल यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई की। चन्नी की पढ़ाई में दिलचस्पी इतनी अधिक थी कि मंत्री रहते हुए वे पंजाब यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे थे।
आकिल हुसैन।Twocircles.net