पूरे श्रमिक समाज और किसानों को विवेकहीन साबित करते प्रधानमंत्री द्वारा जनता को दिए जाने वाले उत्पीडन की दास्तां बहुत लंबी है। याद कीजिये, कोविड 19 के दूसरे दौर की कहानियां, जब ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए पूरा देश भटक रहा था।
संसद में गतिरोध और कार्यवाही ठप्प करना पूरी दुनिया में विपक्ष द्वारा किया जाता है। पर, हमारे देश में एक ऐसी सरकार है, जो स्वयं कभी भी संसद का सत्र शांति से चलने ही नहीं देना चाहती। इसके दो कारण हैं – पहले तो यह कि सत्ता के पास विपक्ष के प्रश्नों का कोई जवाब नहीं रहता और दूसरा यह कि संसद में गतिरोध और सत्र के बीच विपक्ष के बहिष्कार के बीच सत्ता ऐसे सभी बिल पास करा लेती है जो विपक्ष की मौजूदगी में कभी पारित ही नहीं हो सकते हैं। संसद के सत्र के समय गंभीर गतिरोध बना रहे और लगातार हंगामा होता रहे, इसका पर्याप्त इंतजाम प्रधानमंत्री समेत पूरी सत्ता हरेक सत्र के पहले कर लेती है। इसबार भी मणिपुर जल रहा है और सत्ता आग को ताप रही है। यह पर्याप्त नहीं था तो प्रधानमंत्री जी ने सामान नागरिक संहिता का राग फिर से छेड़ दिया। इसके बाद महाराष्ट्र में अजित पावर गुट वाले विधायकों को नीलामी में खरीद लिया। सत्ता-भक्त न्यायाधीश ने राहुल गांधी मामले में न्याय नहीं बल्कि सत्ता को खुश करने का रास्ता चुना। अभी सत्र शुरू होने में कुछ दिन शेष हैं, तब तक सत्ता अपने ही नागरिकों के विरुद्ध युद्ध छेड़ चुकी होगी। वैसे भी बाढ़ में पूरा देश डूब रहा है। इन सबपर संसद में विपक्ष चर्चा की मांग करेगा और सदनों के बीजेपी अध्यक्ष इसे नकार देंगे और फिर विपक्ष सत्र में हंगामा करेगा और बहिष्कार करेगा।
प्रधानमंत्री जी बार-बार देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था की बात करते हैं। जनता पता नहीं इस वक्तव्य से क्या समझ पाती है, पर तथ्य यह है कि बढ़ती अर्थव्यवस्था समाज में आर्थिक असमानता को तेजी से बढ़ाती है। बढ़ती अर्थव्यवस्था के दौर में गरीब पहले से अधिक गरीब हो रहे है और अमीरों की पूंजी बेतहाशा बढ़ती जा रही है। बीजेपी कार्यकारिणी बैठक के बाद 16 जनवरी 2023 को शाम में प्रेस कांफ्रेंस करते हुए रविशंकर प्रसाद ने बड़ी देर तक बताया कि सबसे अंतिम आदमी का उद्धार ही माननीय प्रधानमंत्री जी का सपना है और यह सपना उनके हरेक कार्य और योजना में दिखता है। दूसरी तरफ ठीक इसी दिन सुबह ऑक्सफेम इंडिया ने दावोस में एक रिपोर्ट रिलीज़ की थी, जिसका शीर्षक है – सर्वाइवल ऑफ़ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी। इसके अनुसार आर्थिक सन्दर्भ में देश में सबसे ऊपर की 5 प्रतिशत आबादी के पास देश की 60 प्रतिशत संपदा है, जबकि सबसे नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास सम्मिलित तौर पर महज 3 प्रतिशत संपदा है। वर्ष 2012 से 2021 के बीच देश की संपदा में जितनी बढ़ोतरी दर्ज की गयी, उसमें से 40 प्रतिशत से अधिक सबसे अमीर 1 प्रतिशत आबादी के हिस्से में आया, जबकि सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी को इसका 3 प्रतिशत हिस्सा ही मिला। वैसे भी दुनिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में सम्मिलित देश को अपने 80 करोड़ लोगों को जिंदा रखने के लिए मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है – इससे बड़ा तथाकथित बड़े अर्थव्यवस्था का जनता पर प्रभाव का उदाहरण और क्या हो सकता है?
देश की 70 प्रतिशत जनता किसान और श्रमिक है, और कम से कम इस जनता को ऐसी सरकारों को सबक सिखाना ही होगा जो उन्हें कुछ नहीं समझती, यह भी नहीं मानती कि वे अपने निर्णय स्वयं ले सकते हैं। ऐसी सरकार को सबक सिखाने का समय सामने है, अब आप स्वयं निर्णय करें। जब किसानों ने आंदोलन किया तब प्रधानमंत्री समेत पूरी सरकार ने उन्हें आढ़ती, देशद्रोही, खालिस्तानी और भी बहुत कुछ कहा, केवल किसान कभी नहीं कहा। बात यहीं ख़त्म नहीं होती, उस समय प्रधानमंत्री बार-बार कहते रहे, किसान भ्रम में हैं, उन्हें कांग्रेस ने भड़काया है। जाहिर है, प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार किसानों का अपना कोई विवेक नहीं है और वे किसी के भी भड़काने पर ही कोई कदम उठाते हैं।
किसान आंदोलन ख़त्म होने के ठीक बाद संसद में प्रधानमंत्री ने संसद के इतिहास का सबसे बकवास भाषण दिया था। देश की संसद में दिया गया यह चुनावी भाषण केवल संसद की गरिमा को ही कलंकित नहीं करता पर यह भाषण किसानों के साथ देश के श्रमिकों पर भी लांछन लगाने वाला था। प्रधानमंत्री ने जितने आरोप किसानों पर लगाए थे, वही सारे लांछन श्रमिकों पर भी लगाए।
हर तरीके की अमानवीय बातें केवल हमारे प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं, संसार का कोई दूसरा नेता ऐसी अशोभनीय बातें नहीं करता। इस क्रम में उनका विपक्ष पर आरोप लगाना तो समझ में आता है क्योंकि वे इसके अलावा कुछ जानते ही नहीं। उनकी इंटायर पोलिटिकल साइंस की शिक्षा में बस इतना ही शामिल था। पर, विपक्ष को कोसने के क्रम में वे श्रमिकों को ही विवेकहीन बता गए। उनकी नजर में श्रमिक वर्ग विवेकहीन है और उसे कोई भी और कभी भी भड़का सकता है, और प्रधानमंत्री के अनुसार श्रमिक भड़क भी जायेंगे।
पूरे श्रमिक समाज और किसानों को विवेकहीन साबित करते प्रधानमंत्री द्वारा जनता को दिए जाने वाले उत्पीडन की दास्ताँ बहुत लंबी है। याद कीजिये, कोविड 19 के दूसरे दौर की कहानियां, जब ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए पूरा देश भटक रहा था, अस्पतालों के बाहर मरीजों का हुजूम था, श्मशान के अन्दर-बाहर चिताएं धधक रही थी, नदियों में पानी के बदले लाशें बह रही थीं – कुल मिलाकर सरकारी बदइन्तजामी का ऐसा मंजर अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं देखा गया होगा – इन सबके बीच हमारे प्रधानमंत्री अपनी पीठ लगातार थपथपा रहे थे। कोई भी शायद ऐसा हो जिसके परिवार या रिश्तेदारों में किसी की मौत केवल सरकारी बदइंतजामी के कारण ना हुई हो। पर प्रधानमंत्री जी के अनुसार देश में ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा और ना ही नदियों में कोई लाश बही। यह देश के मध्यम वर्ग पर एक क्रूर तमाचा है – अब इसका जवाब देने का समय आ गया है।
सरकार कहती है उसने करोड़ों रोजगार दिए हैं पर लाखों सरकारी पद खाली पड़े हैं। रोजगार पर सरकार बात नहीं करती और देश के करोड़ों बेरोजगार युवा रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे है। बेरोजगार जब सडकों पर उतरते हैं, तब उन्हें रोजगार के बदले लाठियां और जेल मिलती है। रोजगार के नाम पर सबसे भद्दा मजाक है, प्रधानमंत्री जी टीवी चैनलों पर लाइव आकर कुछ नियुक्तिपत्र बाँटते हैं। यही सरकार बताती है कि उसके पास बेरोजगारी के कोई आंकड़े नहीं हैं। जाहिर है, अब सरकार को बेरोजगारी का करारा जवाब देने का समय सामने है।
देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश, का निरंकुश और आत्ममुग्ध शासक हरेक मोर्चे पर असफल है और प्रधानमंत्री उसे ही आदर्श मुख्यमंत्री का बार-बार खिताब देते हैं। जाहिर है, प्रधानमंत्री की सोच में जातिवाद, अल्पसंख्यकों से घृणा, मानवाधिकार हनन, पुलिसिया हिंसा, भीड़ हिंसा, पत्रकारों का उत्पीडन, महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार के बढ़ते मामले ही किसी मुख्यमंत्री को दूसरों से बेहतर बनाते हैं। अब इस सोच को बदलने का समय आ गया है।
केवल पुलिस का ही नहीं बल्कि इस सरकार ने यह भी दुनिया को दिखा दिया कि सभी संवैधानिक संस्थानों, जांच एजेंसियों और कम से कम स्थानीय न्यायालयों का आसानी से केन्द्रीयकरण किया जा सकता है, और अपने आदेशों पर नचाया जा सकता है। बीजेपी भले ही दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी होने का दावा करे पर चेहरा-विहीन पार्टी है – यह पार्टी नहीं बल्कि एक व्यक्ति है जिसका चेहरा ग्राम पंचायत के चुनावों से लेकर लोक सभा के चुनावों तक नजर आता है। आत्म प्रशंसा में विभोर और आत्ममुग्ध चेहरा, और ऐसे चहरे हमेशा निरंकुश सत्ता का प्रतीक रहते हैं।
निरंकुश सत्ता भले ही तमाम सुरक्षा घेरे में चलती हो पर निश्चित तौर पर हमेशा डरी रहती है – कभी पोस्टर से डरती है, कभी काले कपड़ों से डरती है, कभी पूंजीपतियों पर प्रश्न पूछे जाने से डरती है और कभी लोकतंत्र के नाम पर डरती है। आश्चर्य सत्ता या मीडिया पर नहीं होता, बल्कि जनता पर होता है जिसने सोचना-विचारना बिलकुल बंद कर दिया है। जनता की राजनैतिक सोच ख़त्म हो गयी है, साथ ही देश का सामाजिक ताना-बाना ख़त्म हो गया है| समाज विज्ञान से संबंधित सभी इंडेक्स में हम सबसे अंत में कहीं खड़े रहते हैं, पर ऐसा कोई इंडेक्स होता जो देशों का आकलन उसकी जनता की उदासीनता पर करता तो हम निश्चित तौर पर उसमें अव्वल रहते।
हमारे प्रधानमंत्री और बीजेपी-शासित सूबे के मुख्यमंत्री बार-बार टीवी चैनलों पर आकर आपको गुमराह करने का प्रयास करेंगे, प्रधानमंत्री हजारों करोड़ों रुपये की तथाकथित सौगात लेकर राज्यों का दौरा करेंगे, पूरा सरकारी तंत्र और सोशल मीडिया आपको झांसा देने में जुटेगा, मेनस्ट्रीम मीडिया सत्ता-चालीसा का पाठ करेगा – पर, आप अपना निर्णय लीजिये। प्रधानमंत्री चुनावों को लोकतंत्र उत्सव बताते हैं, पर एक बार ठीक से सोचकर, गहन विचार कर आप केवल लोकतंत्र बचाइये, संभव है उत्सव का मौका भी जल्दी आ जाएगा। आखिर, गुलामी की जंजीरे तोड़ कर आजाद होना भी तो उत्सव ही है।
Source: Navjivan