दिल्ली में पहली बार एक ही दिन में 25 नए मामले सामने आए इनमें से 24 निजामुद्दीन में हुई जमात का हिस्सा थे। दिल्ली सरकार ने भी कड़ा रुख इख्तियार करते हुए मौलाना पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। समाचार एजेंसी एएनआइ ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के हवाले से बताया है कि अब तक 1033 लोगों को निकाला गया है। उनमें से 334 को अस्पताल भेजा गया है और 700 को क्वारंटाइन सेंटर भेजा गया है।
बहरहाल, जाने अनजाने में निजामुद्दीन में जो कुछ हुआ है उसके बाद एक बहस इसको सही या गलत ठहराने पर भी शुरू हो गई है। जाहिरतौर पर ये इंसान और इंसानियत दोनों के लिए एक खतरा जरूर है। ये जमात ऐसे समय में हुई जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का प्रकोप फैल चुका था और भारत भी इससे अछूता नहीं था। हर तरफ से सोशल डिस्टेंसिंग की बात कही जा रही थी। ऐसे में इस जमात पर सवाल उठना लाजिमी हो जाता है। भारत के चीफ इमाम डॉक्टर इलियासी का भी साफ कहना है कि सरकार के नियमों को न मानकर एक बड़ी गलती को अंजाम दिया गया है।
उन्होंने दैनिक जागरण से बात करते हुए कहा कि जब पीएम मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा की थी तो उसके बाद देश की सभी साढ़े पांच लाख मस्जिदों को बंद करने के अलावा इस बात का एलान करवा दिया गया था कि सभी नमाज केवल अपने घर पर ही अदा करेंगे। ये भी कहलवाया गया था कि सोशल डिस्टेंसिंग की बात जो पीएम मोदी ने कही है और जो भी सरकारी निर्देश दिए जा रहे हैं उनको हर कोई कड़ाई से पालन करेगा। इस एलान के बाद चार धाम तक बंद हो गए, सभी मंदिरों के कपाट बंद कर दिए गए, गुरुद्वारे बंद हो गए। ये आदेश सभी के लिए था। लिहाजा ये हमारी अपनी नैतिक जिम्मेदारी थी कि इस को पालन करें।
पीएम मोदी ने भी कोरोना के खतरे को भांपते हुए ही ये कदम उठाया था। उन्होंने लॉकडाउन के दौरान इस तरह के आयोजन पर सवाल उठाते हुए इसकी जांच की भी मांग की है। उन्होंने कहा कि इसकी पूरी जिम्मेदारी इसके आयोजकों की है। उनके मुताबिक इन्हें सरकार कीगाइडलाइन को मानना चाहिए था। उनके मुताबिक जब मस्जिदों से नमाज घर पर पढ़ने को लेकर एलान कर दिया गया उसके बाद कहीं कोई नमाज मस्जिदों में नहीं पढ़ी गई। बातचीज के दौरान उन्होंने इस महामारी पर चिंता व्यक्त करते हुए सभी से अपील की है कि जो जहां है वहीं पर रहे और सरकार के बनाए और बताए नियमों को खुद भी पालन करे और दूसरों को भी ऐसा करने को कहे।
source: Jagran.com
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