(रिपोर्ट: शाश्वत तिवारी)
तेलंगाना के काकतीय रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल कर लिया है। यह निर्णय रविवार को हुए यूनेस्को के विश्व धरोहर समिति के 44वें सत्र में लिया गया। इसके बाद यूनेस्को ने ट्वीट कर इस बारे में जानकारी दी। अपने ट्वीट में यूनेस्को ने लिखा कि अभी-अभी विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित: काकतीय रुद्रेश्वर मंदिर (रामप्पा मंदिर), भारत के तेलंगाना में। वाह-वाह!
रामप्पा मंदिर के यूनेस्को की सूची में शामिल होने को भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रयासों का नतीजा बताया जा रहा है। मंत्रालय काफी समय से मंदिर को विश्व धरोहर की सूची में शामिल करवाने की कोशिश में लगा हुआ था। वर्ष 2019 में विदेश मंत्रालय ने यूनेस्को के समक्ष रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर 25 जुलाई 2021 को यूनेस्को ने अपनी मुहर लगा दी।
इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर बधाई दी। उन्होंने लिखा कि ”सभी को बधाई, खासकर तेलंगाना की जनता को, प्रतिष्ठित रामप्पा मंदिर महान काकतीय वंश की उत्कृष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। मैं आप सभी से इस राजसी मंदिर परिसर की यात्रा करने और इसकी भव्यता का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का आग्रह करता हूं।
उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी ट्वीट करते हुए लिखा कि यह गौरव का विषय है कि तेलंगाना के पालमपेट स्थित, 13वीं सदी के काकातिया रुद्रश्वेर (रामप्पा) मंदिर को यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर स्वीकार किया गया है। यह तेलंगाना की प्राचीन संस्कृति की समृद्धि का प्रमाण है। तेलंगाना के निवासियों की सृजनात्मका अभिनंदन करता हूं। मेरी बधाई!’
भारत का 31 वां सांस्कृतिक विश्व धरोहर स्थल:
विश्व धरोहर स्थल का दर्जा हासिल करने के बाद रामप्पा मंदिर अन्य भारतीय सांस्कृतिक स्मारकों जैसे अजंता और एलोरा की गुफाओं, लाल किला, फतेहपुर सीकरी, तमिलनाडु के चोल मंदिरों के साथ भारत का 31 वां सांस्कृतिक विश्व धरोहर स्थल बन गया है।
इसलिए कहा जाता है रामप्पा मंदिर:
संस्कृति मंत्रालय के अनुसार रुद्रेश्वर मंदिर का निर्माण 1213 ईस्वी में काकतीय साम्राज्य के शासनकाल के दौरान काकतीय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र द्वारा किया गया था। यहां के पीठासीन देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं। 40 वर्षों तक मंदिर निर्माण करने वाले एक मूर्तिकार के नाम पर इसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल का प्रमाण:
रुद्रेश्वर मंदिर तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से लगभग 200 किमी. उत्तर-पूर्व में पालमपेट गांव में स्थित है। काकतीयों के मंदिर परिसरों की विशिष्ट शैली, तकनीक और सजावट काकतीय मूर्तिकला के प्रभाव को प्रदर्शित करती हैं। यह मंदिर इसकी अभिव्यक्ति है और बार-बार काकतीयों की रचनात्मक प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत करती है। मंदिर छह फुट ऊंचे तारे जैसे मंच पर खड़ा है, जिसमें दीवारों, स्तंभों और छतों पर जटिल नक्काशी से सजावट की गई है, जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल को प्रमाणित करती है। समयानुरूप विशिष्ट मूर्तिकला व सजावट और काकतीय साम्राज्य का एक उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य है। मंदिर परिसरों से लेकर प्रवेश द्वारों तक काकतीयों की विशिष्ट शैली, जो इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय है, दक्षिण भारत में मंदिर और शहर के प्रवेश द्वारों में सौंदर्यशास्त्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप की पुष्टि करती है।