(रिपोर्ट: शाश्वत तिवारी)
गुजरात के हड़प्पा युग के महानगर धोलावीरा को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल में शामिल कर लिया है। यह निर्णय यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के चल रहे 44वें सत्र में 27 जुलाई को लिया गया। इस बारे में यूनेस्को ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट करते हुए लिखा कि “ब्रेकिंग! धोलावीरा: भारत में एक हड़प्पा शहर, अभी-अभी यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में अंकित है। बधाई हो!
भारत में हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े और सबसे प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में से एक है धोलावीरा
धोलावीरा की पहचान दुनिया में विश्व धरोहर स्थल के रूप में हो इसका प्रताव भारतीय विदेश मंत्रालय ने ही यूनेस्को के समक्ष रहा था। मंत्रालय की प्रयासों का नतीजा है कि धोलावीरा को यूनेस्को की इस सूची में शामिल किया गया। मंत्रालय काफी समय से इसको विश्व धरोहर की सूची में शामिल करवाने की कोशिश में लगा हुआ था।
इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि इस खबर से बुहत खुशी हुई। धोलावीरा एक महत्वपूर्ण शहरी केंद्र था और हमारे अतीत के साथ हमारे सबसे महत्वपूर्ण संबंधों में से एक है। यह विशेष रूप से इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व में रुचि रखने वालों के लिए एक यात्रा अवश्य है।
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि मैं अपने छात्र जीवन के दौरान पहली बार धोलावीरा गया था और उस जगह से मंत्रमुग्ध हो गया था। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, मुझे धोलावीरा में विरासत संरक्षण और जीर्णोद्धार से संबंधित पहलुओं पर काम करने का अवसर मिला। हमारी टीम ने वहां पर्यटन के अनुकूल बुनियादी ढांचा बनाने के लिए भी काम किया था।
धोलावीरा भारत में हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े और सबसे प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में से एक है, जो गुजरात के कच्छ जिले की भचाऊ तालुका के खदिरबेट में स्थित है। यह स्थल कच्छ के रण में स्थित नमक के विशाल मैदानों से घिरा है और इसमें प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के खंडहर भी शामिल हैं।
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यहां 3500 ईपू से लोग बसना आरम्भ हो गए थे और फिर लगातार 1800 ईपू तक आबादी बनी रही। धोलावीरा पांच हजार साल पहले विश्व के सबसे व्यस्त महानगर में गिना जाता था।
सुरक्षित किले के एक महाद्वार के ऊपर उस जमाने का साईन बोर्ड पाया गया है, जिस पर दस बड़े-बड़े अक्षरो में कुछ लिखा है, जो पांच हजार साल के बाद आज भी सुरक्षित है। वह महानगर का नाम है अथवा प्रान्त अधिकारियों का नाम, यह आज भी एक रहस्य है। ऐसा लगता है जैसे नगरजनों का स्वागत हो रहा हो? सिन्धु घाटी की लिपि आज भी एक अनसुलझी पहेली है।
बता दें कि इससे पहले 25 जुलाई 2021 को तेलंगाना के काकतीय रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया गया था। इसके लिए वर्ष 2019 में भारतीय विदेश मंत्रालय ने यूनेस्को के समक्ष रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था।