फतेहपुर सीकरी की ऐतिहासिक धरती, जो अपने स्थापत्य, इतिहास और आध्यात्मिक महत्व के लिए जानी जाती है, एक बार फिर आध्यात्मिक पुनर्जागरण की ओर अग्रसर है। दार्शनिकता, सूफियाना रंग और सामाजिक समरसता का केंद्र रही यह भूमि, एक नए अध्याय का साक्षी बनी है। हज़रत शेख़ सलीम चिश्ती (रह.) की दरगाह, जो सदियों से भारतवर्ष में अध्यात्म, प्रेम और भाईचारे का प्रतीक रही है, अब अपने 17वें वंशज, पीरज़ादा अरशद अज़ीम फ़रीदी चिश्ती के नेतृत्व में एक नई चेतना की ओर अग्रसर है। उनका सज्जादानशीन के रूप में उत्तराधिकार इस 500 वर्ष पुरानी परंपरा को न केवल जीवित रखता है, बल्कि उसमें आधुनिक सोच, सामाजिक चेतना और पत्रकारिता की धार को भी सम्मिलित करता है।
फतेहपुर सीकरी में स्थित दरगाह हज़रत शेख सलीम चिश्ती (रह.) का ऐतिहासिक महत्व अपार है। महान मुगल सम्राट अकबर ने संतान की प्राप्ति की कामना से हज़रत शेख सलीम चिश्ती (रह.) की सेवा में उपस्थित होकर आशीर्वाद प्राप्त किया था। उनकी दुआ से जब अकबर को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तो उन्होंने इस पवित्र भूमि पर एक भव्य नगर ‘फतेहपुर सीकरी’ बसाया और हज़रत के मार्गदर्शन में दरगाह का निर्माण कराया। 1576 ईस्वी में दरगाह के प्रथम सज्जादानशीन, हज़रत शेख बदरुद्दीन चिश्ती (रह.) की नियुक्ति के समय स्वयं सम्राट अकबर ने उपस्थित रहकर इस पवित्र रस्म का साक्षी बनकर दरगाह की आध्यात्मिक गरिमा को मान्यता प्रदान की थी। इतना ही नहीं, अकबर ने हज़रत शेख सलीम चिश्ती (रह.) के पुत्रों और वंशजों को अपने दरबार में उच्च पदों पर नियुक्त कर उनकी श्रद्धा और सम्मान को सार्वजनिक रूप से स्थापित किया।
आज, दरगाह हज़रत शेख सलीम चिश्ती (रह.) केवल भारतीय ही नहीं, बल्कि विश्व समुदाय के लिए प्रेम, शांति और मानवता का प्रतीक बन चुकी है, जहाँ जाति, धर्म, रंग या लिंग का भेद किए बिना श्रद्धालु अपनी मन्नतें पूरी कराने आते हैं। इस दरगाह की ऊँचाई भारतीय अध्यात्मिक विरासत और सूफीवाद की समावेशी भावना को जीवंत बनाती है।
फतेहपुर सीकरी की पावन धरती, जिसकी हर ईंट इतिहास के स्वर्णिम अध्यायों की गवाह रही है, आज भी उसी ऊर्जा और आध्यात्मिकता के साथ जीवंत है। यहाँ की हवाओं में आज भी अकबर के समय की वह श्रद्धा तैरती है, जो उन्होंने हज़रत सलीम चिश्ती (रह.) के प्रति प्रकट की थी। यह वही स्थान है जहाँ महान सूफी संत ने अपने तप और दुआओं से इंसानियत के लिए प्रेम और मुक्ति का संदेश दिया था। दरगाह आज भी मानवता के लिए प्रेम और आध्यात्मिक आस्था की मशाल थामे हुए है।
यह स्थान केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं रहा, बल्कि यह भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का जीवंत उदाहरण बन चुका है। हर धर्म, जाति और पंथ के लोग यहाँ आकर समान श्रद्धा से शीश नवाते हैं। सूफी परंपरा के इस केन्द्र ने सदियों तक प्रेम, भाईचारे और सामाजिक सौहार्द का प्रसार किया है, जो आज के समय में और भी आवश्यक हो गया है। इस अनमोल विरासत को आगे बढ़ाने का दायित्व अब एक ऐसे शख्स के हाथों में है जो अपनी सादगी, विद्वता, करुणा और सामाजिक सरोकारों के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं — पीरज़ादा अरशद अज़ीम फ़रीदी चिश्ती।
अरशद फ़रीदी चिश्ती का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जहाँ सूफी परंपरा न केवल एक आस्था थी, बल्कि जीवन शैली थी। उनके पिता, पीरज़ादा रईस मियाँ फरीदी चिश्ती, ने बाल्यकाल से ही दरगाह की सेवा संभाली थी। अरशद साहब ने इसी माहौल में आध्यात्मिकता और सेवा की शिक्षा पाई, और साथ ही आधुनिक शिक्षा में भी विशिष्ट स्थान बनाया। पत्रकारिता में तीन दशक से अधिक का उनका अनुभव, जिनमें दैनिक जागरण, अमर उजाला और राष्ट्रीय सहारा जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र शामिल हैं, उन्हें सामाजिक सरोकारों की गहरी समझ प्रदान करता है। उनकी लेखनी वंचितों, शोषितों और उपेक्षितों के लिए एक आवाज बनी, और उनकी पत्रकारिता केवल समाचार संग्रहण नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का एक सशक्त माध्यम रही।
आज जब वे दरगाह के सज्जादानशीन बने हैं, तो उनका यह बहुआयामी व्यक्तित्व दरगाह की परंपरा में एक नया अध्याय जोड़ रहा है। उनका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक नेतृत्व तक सीमित नहीं है, बल्कि वे दरगाह को एक ऐसे जीवंत सामाजिक केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहते हैं जहाँ प्रेम, सेवा और राष्ट्रीय एकता के आदर्शों को मजबूती से आगे बढ़ाया जाए। उनकी सादगी और आत्मीयता हर आगंतुक को सहजता से आकर्षित करती है। उनकी मुस्कुराहट में वह अपनापन है जो सूफी संस्कृति की आत्मा है—न कोई भेदभाव, न कोई ऊंच-नीच, बस इंसानियत से इंसानियत तक की यात्रा।
इस पवित्र अवसर पर आयोजित रस्म सज्जादगी एवं जानशिनी समारोह में देशभर से प्रतिष्ठित सूफी संत, धार्मिक नेता और जनप्रतिनिधि शामिल हुए। अजमेर शरीफ दरगाह के जानशीन सज्जादानशीन सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती, साहिबज़ादा सैयद हमज़ा मियाँ चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया के सज्जादानशीन पीर फरीद निजामी, रुदौली दरगाह के सज्जादानशीन नैयर मियां, कलियर शरीफ दरगाह के सज्जादानशीन अली शाह मियां, हैदराबाद से दर्गाह हज़रत मोहम्मद हसन साहब के सज्जादानशीन और आगा मोहम्मद कासिम साहब समेत कई गणमान्य हस्तियाँ समारोह में सम्मिलित हुईं। राजनीतिक जगत से भी विभिन्न प्रतिनिधियों ने अपनी उपस्थिति से इस अवसर की गरिमा बढ़ाई। फतेहपुर सीकरी के भाजपा सांसद राजकुमार चाहर, सपा सांसद मुहीबुल्ला नदवी, पूर्व सांसद अशोक तंवर सहित अनेक गणमान्य लोग भी समारोह में उपस्थित रहे।
अरशद फ़रीदी चिश्ती, पीरज़ादा रईस मियाँ चिश्ती के पुत्र हैं, जो स्वयं एक अत्यंत सम्मानित सज्जादानशीन रहे हैं और जिनका सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक हलकों में गहरा प्रभाव रहा है। 1943 में जब मात्र 7 वर्ष की आयु में रईस मियाँ चिश्ती को सज्जादानशीन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई, तब से लेकर आज तक इस खानदान ने चिश्ती परंपरा की गरिमा और गहराई को बरकरार रखा है। अब 80 वर्षों के अंतराल के बाद यह जिम्मेदारी एक बार फिर पारंपरिक रीति-रिवाज़ों और सर्वसम्मति से अरशद फ़रीदी चिश्ती को सौंप दी गई है।
यह उत्तराधिकार मात्र एक पारिवारिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा की अगली कड़ी है—जिसमें सेवा, समर्पण और इंसानियत का मार्गदर्शन अंतर्निहित है। अरशद फ़रीदी के हाथों में यह दायित्व आने का अर्थ है, आध्यात्मिकता का वैज्ञानिक सोच से मेल, परंपरा का प्रगतिशील व्याख्या से संगम और धार्मिक नेतृत्व का सामाजिक क्रांति से संवाद।
अरशद फ़रीदी चिश्ती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे न केवल आध्यात्मिक नेता हैं, बल्कि एक सफल और अनुभवी पत्रकार भी हैं। 32 वर्षों की पत्रकारिता में उन्होंने देश के कई प्रतिष्ठित अखबारों जैसे दैनिक जागरण, अमर उजाला और राष्ट्रीय सहारा में काम किया है। वे रोजनाम मेरा वतन (उर्दू) और मेट्रो मीडिया (हिंदी) जैसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित समाचार पत्रों के संपादक हैं। उनका पत्रकारिता का दृष्टिकोण सिर्फ खबरें देना नहीं रहा, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का साधन रहा है। उनकी रिपोर्टिंग ने उन आवाज़ों को मुखर किया जिन्हें अक्सर दबा दिया जाता है—अल्पसंख्यकों की समस्याएं, भ्रष्टाचार की परतें, सामाजिक अन्याय की कहानियाँ और कमजोर वर्गों के अधिकार। उन्होंने पत्रकारिता को मिशन की तरह जिया है, जिसमें सच्चाई की रोशनी से समाज के अंधेरों को चीरने का प्रयास होता रहा है।
अब जब यही दृष्टि सूफी परंपरा के साथ जुड़ती है, तो एक नई ऊर्जा उत्पन्न होती है। सूफी दर्शन में जो प्रेम, समर्पण और समानता की भावना है, वह अरशद फ़रीदी चिश्ती के सामाजिक सरोकारों के साथ घुल-मिलकर एक व्यापक रूप लेती है। अरशद फ़रीदी का सज्जादानशीन बनना सिर्फ एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक विचारधारा का स्थानांतरण है। वह विचारधारा जो आधुनिकता को परंपरा के विरुद्ध नहीं, बल्कि उसके पूरक के रूप में देखती है। आज जब समाज धार्मिक असहिष्णुता, कट्टरता और विघटन की ओर बढ़ रहा है, तब फतेहपुर सीकरी से एक ऐसा स्वर गूंजता है, जो मेलजोल, संवाद और समरसता का संदेश देता है। उनकी पहचान एक ऐसे व्यक्ति की है, जो मौलिक सोच रखता है, सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध है और धार्मिक नेतृत्व को बंद कमरों से निकालकर समाज की मुख्यधारा में लाना चाहता है। एक्वेरियस राशि के व्यक्ति के रूप में उनमें रचनात्मकता, स्वतंत्रता, मानवीय संवेदनशीलता और प्रगतिशीलता जैसे गुण कूट-कूटकर भरे हैं। यही कारण है कि वे न केवल धार्मिक श्रद्धालुओं के, बल्कि बुद्धिजीवियों, राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के भी प्रिय हैं।
अरशद फ़रीदी चिश्ती की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वे फतेहपुर सीकरी और आस-पास के क्षेत्रों में वर्षों से सांप्रदायिक सौहार्द और शांति के लिए कार्य कर रहे हैं। वक्फ बोर्ड, स्थानीय प्रशासन और दरगाह के प्रबंधन में उनकी सक्रिय भागीदारी यह दर्शाती है कि वे केवल धर्मगुरु नहीं, बल्कि समाज-सुधारक भी हैं। उनके सूफियाना कार्यकाल में दरगाह न केवल आस्था का केंद्र बनी रहेगी , बल्कि एक संवाद-स्थल के रूप में भी जनि जायेगी, जहाँ विभिन्न धर्मों, विचारधाराओं और भाषाओं के लोग एकत्र होंगे ।
अरशद फ़रीदी चिश्ती को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित किया गया है। उन्हें दिल्ली विधानसभा द्वारा 2003 में ‘सर्वश्रेष्ठ पत्रकार पुरस्कार’, मातृश्री पुरस्कार (2005), एज़ाज़ रिज़वी मेमोरियल सोसाइटी द्वारा 2018 में और 2022 में ऑल इंडिया माइनॉरिटी फोरम द्वारा एक सफल और धर्मनिरपेक्ष पत्रकार के रूप में सम्मानित किया गया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड पीस कॉन्फ्रेंस, बैंकॉक (2003) और विश्व हिंदी सम्मेलन, जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में भारत का प्रतिनिधित्व किया। यह अंतरराष्ट्रीय अनुभव उन्हें पवित्र दरगाह को विश्व स्तर पर और अधिक प्रमुखता से उजागर करने में भी मदद करेगा।
वे उर्दू भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु राष्ट्रीय उर्दू भाषा प्रोत्साहन परिषद (NCPUL), दिल्ली – भारत सरकार के सदस्य भी हैं I राष्ट्रीय उर्दू भाषा प्रोत्साहन परिषद (NCPUL), भारत सरकार के सदस्य के रूप में पीरज़ादा अरशद फ़रीदी चिश्ती की भूमिका उनके सज्जादानशीन के रूप में सेवाएं और अधिक प्रभावी बनाने में कई तरह से सहायक होगी – भाषायी और सांस्कृतिक संवाद का विस्तार: NCPUL की सदस्यता के माध्यम से अरशद फ़रीदी चिश्ती को उर्दू भाषा के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने का अवसर मिलता है। चूंकि दरगाह हज़रत शेख़ सलीम चिश्ती (र.अ.) में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं, ऐसे में उर्दू जैसी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति की भाषा के माध्यम से संवाद को और अधिक गहराई और व्यापकता दी जा सकती है। परिषद से जुड़ाव उन्हें दरगाह परिसर को एक ऐसे केंद्र के रूप में विकसित करने में मदद करेगा जहाँ सूफी साहित्य, उर्दू कविता, अदब और आध्यात्मिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जा सके। इससे दरगाह केवल इबादत का स्थान न रहकर एक सांस्कृतिक-शैक्षणिक केंद्र भी बन सकेगा। परिषद की सदस्यता उन्हें केंद्र सरकार के सांस्कृतिक, शैक्षणिक और अल्पसंख्यक कल्याण संबंधी कार्यक्रमों से सीधे जोड़ती है, जिससे वे दरगाह से जुड़े समाज कल्याण और शिक्षा संबंधी योजनाओं को अधिक कुशलता से लागू कर सकते हैं। उर्दू भाषा, जो कि भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है, उनके कार्यों में धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समरसता के संदेश को अधिक प्रभावी रूप में प्रस्तुत करने का माध्यम बनेगी। इस प्रकार, उनकी यह भूमिका न केवल उनके सज्जादानशीन के कार्य को शक्ति प्रदान करती है, बल्कि दरगाह को एक जीवंत और प्रगतिशील आध्यात्मिक-सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण साबित होती है।
आज जब अरशद फ़रीदी चिश्ती सूफी परंपरा के इस प्रतिष्ठित केंद्र के सज्जादानशीन के रूप में पदभार ग्रहण कर चुके हैं, तो यह न केवल एक परंपरा का निर्वाह है, बल्कि एक नए युग का प्रारंभ भी है। यह युग परंपरा में आधुनिकता के समावेश का, आध्यात्मिकता में सामाजिक चेतना के मिश्रण का और नेतृत्व में सेवा भावना के प्रसार का है। उनके नेतृत्व में फतेहपुर सीकरी की यह दरगाह न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र बनी रहेगी, बल्कि एक ऐसा संस्थान बनकर उभरेगी, जो शिक्षा, संवाद, सामाजिक न्याय और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक होगी। यह लेख इस बात का प्रतीक है कि परंपराएं तब और अधिक प्रासंगिक हो जाती हैं जब उन्हें समय के अनुसार नई सोच और नई ऊर्जा से सिंचित किया जाए। और अरशद फ़रीदी चिश्ती उसी नवोन्मेष की प्रेरणा हैं।
अरशद फ़रीदी चिश्ती यह भलीभांति समझते हैं कि भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में सूफी संस्कृति का महत्व कितना गहरा है। उनका मानना है कि सूफीवाद का सार प्रेम, सहिष्णुता और एकता में निहित है, जो आज के तनावपूर्ण वातावरण में एक अमूल्य धरोहर की तरह है। उनके नेतृत्व में दरगाह को अब न केवल आध्यात्मिक उत्थान का केंद्र बनाया जाएगा, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक उत्थान के क्षेत्रों में भी पहल की जाएगी। वह छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजनाओं, महिलाओं के लिए स्वावलंबन कार्यक्रमों, और जरूरतमंदों के लिए मुफ्त चिकित्सा शिविरों जैसी योजनाओं को सक्रिय रूप देने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
सोच समावेशी है, जो उन्हें न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि समस्त मानवता के लिए एक मार्गदर्शक बनाती है। उनकी दृष्टि में दरगाह एक ऐसे प्रकाश स्तंभ के समान है, जो नफरत के अंधकार में प्रेम और करुणा की राह दिखाती है। वह यह मानते हैं कि सच्ची सूफी परंपरा सीमाओं को नहीं, दिलों को जोड़ने का कार्य करती है। उनके प्रयास इस तथ्य को भी रेखांकित करते हैं कि दरगाहें अब केवल इबादतगाह नहीं रहीं, बल्कि सामाजिक पुनर्निर्माण के केंद्र बन गई हैं।
यही कारण है कि देश के कोने-कोने से सूफी संत, धार्मिक नेता और सामाजिक कार्यकर्ता उनके नेतृत्व की सराहना कर रहे हैं। दरगाह हज़रत सलीम चिश्ती (रह.) के इस नए अध्याय की शुरुआत ने फतेहपुर सीकरी को फिर से एक बार राष्ट्रीय चेतना के मानचित्र पर प्रमुखता से अंकित कर दिया है। यहाँ से उठने वाली प्रेम, सेवा और एकता की आवाज़ दूर-दूर तक गूंजेगी, और एक नई पीढ़ी को प्रेरित करेगी।
समारोह का समापन पीरज़ादा रईस मियाँ फरीदी चिश्ती द्वारा सभी के कल्याण के लिए की गई दुआओं से हुआ। इसके बाद पारंपरिक व्यंजनों का भव्य लंगर आयोजित किया गया, जिसमें ‘दाल-बाटी-चूरमा’ और ‘ठंडाई’ ने सभी अतिथियों का दिल जीत लिया। इस आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि दरगाह न केवल आध्यात्मिक केंद्र है, बल्कि वह प्रेम और भाईचारे का सजीव उत्सव भी है।
इस समूचे अवसर को एक सुंदर भाव में समेटते हुए अरशद फ़रीदी चिश्ती का एक कथन दिल को छू जाता है:
“सूफी वह नहीं जो मीनारों से ऊँचा दिखे,
सूफी वह है जो हर दिल की ज़मीन पर प्रेम और करुणा का बीज बो दे।“
यह संदेश ही आने वाले समय में दरगाह हज़रत सलीम चिश्ती (रह.) और पीरज़ादा अरशद अज़ीम फ़रीदी चिश्ती के नेतृत्व में एक नए युग की आधारशिला बनेगा—जहाँ नफरत की नहीं, सिर्फ मोहब्बत की जीत होगी।
फतेहपुर सीकरी की धरती, जहाँ कभी अकबर ने अपनी आस्था का दीपक जलाया था, आज एक बार फिर अरशद फ़रीदी चिश्ती के नेतृत्व में उसी आस्था, उसी प्रेम और उसी अखंड एकता के प्रकाश से आलोकित हो रही है। इतिहास एक बार फिर साक्षी बनने को तैयार है—एक नए युग के, एक नई परंपरा के, जो प्रेम, शांति और करुणा के शाश्वत मूल्यों पर आधारित होगी।

आसिफ़ ज़मां रिज़वी