आज जहाँ हम कोविद -19 से जूझ रहे है वही इसने समाज के कुछ वर्गों को भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। वायरस के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से सरकार की नीतियां- जैसे बड़े समारोहों और अन्य सार्वजनिक स्थानो पर प्रतिबंध लगाना, इत्यादि ने कुछ लोगों को पोषण या सूक्ष्म पोषक तत्वों के स्रोतों तक पहुंचने से अवरुद्ध किया है।
एक मजबूत लोकतंत्र जो की एक ओर विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र मे दुनिया मे नए आयाम स्थापित कर रहा हैं वहीं दूसरी ओर केवल उत्तर प्रदेश के कुपोषित बच्चो की संख्या अफरिका के तमाम देशों से भी आगे है ।
कुपोषण से शारीरिक विकास पर तो असर पड़ता ही है, इसका सबसे ज्यादा असर बच्चे के मानसिक विकास पर पड़ता है। बचपन में कुपोषण बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को वह नुकसान पहुंचाता है, जिसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती। कुपोषित बच्चे का दिमाग ठीक से विकसित नहीं हो पाता। यही वजह है कि बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों में कुपोषित बच्चों का औसत ज्यादा होता है।
भारत में लोग पहले से ही लॉकडाउन के परिणाम के रूप में पीड़ित हैं – विशेष रूप से जिनमें गरीब, अनछुए शामिल हैं जोकी वायरस और उसके रोकथाम के उपायों के प्रभाव से ही बुरी तरह प्रभावित है।
हमारे देश के लाखों बच्चे अपर्याप्त आश्रय, स्वास्थ्य सेवाओं और स्वच्छ पानी और स्वच्छता के सीमित साधनो के कारण अपने विकास के अवसरों को खो रहे हैं।मज़े की बात यह है की ऐसे लोग मोबाइल हैंडसेट तो रखते है मगर वोह इतने जागरूक नहीं है के उनहे खुले मे शौच नहीं करना है ।
जागरूकता दवारा उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है क्योंकि *कोरोनोवायरस की तुलना में भूख हमेशा अधिक खतरनाक होती है।* अध्ययन के अनुसार, 2017 में भारत में 10.4 लाख मौतें हुईं, जिनमें से 7,06,000 मौतों को कुपोषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
इसी तरह, भारत में ज़्यादातर महिलाओं की मृत्यु का कारण एनीमिया और आयरन की कमी है , जोकी दुनिया की सबसे अधिक दर है। भारतीय परिवारों में ज्यादातर महिलाएं अंत में भोजन करती हैं, जिससे 42 फीसदी भारतीय महिलाओं का वजन गर्भावस्था से पहले काफी कम होता है।नतीजतन बहुत-से भारतीय बच्चे गर्भ में ही कुपोषित हो जाते हैं, जिससे वे कभी उबर नहीं पाते।
चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं, जिसमें हर जगह हर किसी के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना शामिल है, ख़ासकर महिलाओं और बच्चों के लिए।
कुपोषण के गंभीर स्वास्थ्य परिणामों से कमज़ोर लोगों को बचाना महामारी के रूप में ‘संकट’ को रोकने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
सरकार को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए और अधिक संसाधनों को तुरंत निर्देशित करना चाहिए।
पोषण अभियान स्टंटिंग, कुपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) को कम करने और कम वज़न के बच्चो के जन्म को संतुलित करने का लक्ष्य रखता है।
अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया संबोधन मे उन्होने पौष्टिक भोजन के महत्व पर ज़ोर दिया और घोषणा की कि सितंबर का महीना पोषण माह के रूप में मनाया जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि हर महीने गर्भवती महिला का निरीक्षण करना चाहिए और कुपोषण को रोकने के उद्देश्य से जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए । लोगों को पोषण के महत्व के बारे में याद दिलाने की ज़रूरत है और उन्हें यह जानना होगा कि पोषण भोजन से पेट भरने से ज़्यादा है। पोषण के महत्व के बारे में लोगों की भागीदारी और जागरूकता पोषण आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और आने वाले वर्षों में कुपोषण को काफी कम कर देगी।
इस पोषण माह का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों में पोषण संबंधी परिणामों में सुधार करना, स्टंटिंग, कम वज़न, एनीमिया के स्तर को कम करना है।
*“जरूरत है कि जन्म के समय चेकअप, स्तनपान और पूरक आहार, एनीमिया की रोकथाम, टीकाकरण, स्वच्छता, जल और स्वच्छता से संबंधित विषयों के माध्यम से अच्छे पोषण व्यवहार को बढ़ावा देने की।*
कोविद के दौरान भूख के संकट से बचने के लिए, हमारे पोषण मिशन को धीमा नहीं होना चाहिए। *”हम सभी को भूख के महत्व के बारे में अधिक जागरूकता फैलाने के लिए एक साथ आने की जरूरत है क्योंकि हमारी भावी पीढ़ियां दांव पर हैं।”