कोरोना वायरस से बचाव के साथ हमें उन बातों को भी अच्छी तरह से जान लेना चाहिए जो कई बार सवालों के रूप में हमारे सामने आती हैं और जल्द ही अफवाहों में तब्दील हो जाती हैं। कोरोना के प्रकोप से बचाव के वक्त इस तरह की अफवाहें कई बार नई मुसीबत की तरह आती हैं। ऐसे तमाम सवालों और दुनिया के जाने- माने विशेषज्ञों के आधार पर उनकी सच्चाई पर पेश है एक नजर: स्रोत: गार्जियन
सवाल: क्या यह ज्यादा खतरनाक वायरस (उत्परिवर्तन से दूसरे स्ट्रेन) में बदल रहा है?
सच्चाई: सभी वायरस समय के साथ परिवर्तन के दौर से गुजरते हैं और कोविड -19 का सृजन करने वाला वायरस भी इससे अलग नहीं है। वायरस का खतरनाक होना इसके प्राकृतिक चयन पर निर्भर करता है। जो शरीर में तेजी से फैल सकते हैं और शरीर में इसे प्रभावी रूप से दोहरा सकते हैं, सबसे सफल होंगे। यह जरूरी नहीं है कि जानलेवा और बीमार बना देने वाले वायरस सबसे खतरनाक होते हैं। कई बार वे अक्षम हो जाते हैं और यहां तक की उनमें संक्रमित करने की आशंका भी कम होती है।
वुहान और अन्य शहरों में रोगियों से लिए गए वायरस के 103 नमूनों का चीन के वैज्ञानिकों ने जेनेटिक विश्लेषण किया। जिसके निष्कर्ष बताते हैं कि प्रारंभिक तौर पर दो मुख्य उपभेद हैं। जिन्हें एल और एस नाम दिया गया है। यद्यपि एस की अपेक्षा एल ज्यादा प्रचलित है (करीब 70 फीसद नमूने पूर्व के थे)। वायरस की एस शाखा पैतृक संस्करण में पाई गई थी। शोध टीम का सुझाव है कि एल ज्यादा आक्रामक हो सकता है। यह या तो शरीर में आसानी से प्रसारित हो सकता है अथवा शरीर में आसानी से प्रतिकृति बना सकता है। हालांकि अभी तक इसकी प्रत्यक्ष तुलना नहीं की गई है।
सवाल: क्या यह सर्दी के फ्लू से ज्यादा खतरनाक नहीं है?
सच्चाई: कोरोना वायरस से संक्रमित ज्यादातर व्यक्ति मौसमी फ्लू के लक्षणों जैसा ही अनुभव करेंगे, लेकिन बीमारी को समग्र रूप से देखने पर पता चलता है कि मृत्यु की दर सहित यह ज्यादा गंभीर है। चीन में अंतरराष्ट्रीय मिशन का नेतृत्व कर रहे ब्रूस आयलवर्ड ने कहा कि करीब एक फीसद मृत्यु दर का वर्तमान अनुमान सही है। यह कोविड-19 को मौसमी फ्लू की तुलना में करीब 10 गुना अधिक घातक बना देता है। अनुमान के मुताबिक मौसमी फ्लू से हर साल 2.90 से 6.50 लाख लोगों की मौत होती है।
सवाल: सिर्फ बुजुर्गों के लिए जानलेवा है, कम उम्र के लोगों को चिंतामुक्त हो जाना चाहिए?
सच्चाई: बहुत से लोग जो बुजुर्ग नहीं हैं और जिनकी बुनियादी स्वास्थ्य स्थिति खराब नहीं है, वे कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार नहीं होंगे। हालांकि बीमारी में मौसमी फ्लू की तुलना में गंभीर श्वसन लक्षण होने की आशंका होती है। साथ ही कई अन्य समूहों को ज्यादा जोखिम होता है। इसमें स्वास्थ्य कार्यकर्ता सहित वो लोग आते हैं जिनके वायरस के प्रत्यक्ष संपर्क में आने की आशंका होती है।
सवाल: मास्क काम नहीं करते?
जवाब: चेहरे के मास्क को पहनना इस बात की कतई गारंटी नहीं है कि आप बीमार नहीं होंगे। यह वायरस आंखों और छोटे वायरल कणों के माध्यम से मास्क को भी भेद सकता है। हालांकि, मास्क छींक औथवा खांसी के साथ निकलने वाली बड़ी बूदों को पकड़ने में प्रभावी होते हैं, जो कोरोना वायरस के प्रसार का मुख्य मार्ग है। यदि किसी संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में होने की आशंका हैं, तो मास्क बीमारी के प्रसार को कम कर देता है। यदि किसी में कोरोना के लक्षण हैं अथवा संक्रमण का इलाज चल रहा है तो मास्क पहनना दूसरों को भी सुरक्षित कर सकता है। इसलिए मरीजों की देखभाल करने वाले स्वास्थ्य और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए मास्क महत्वपूर्ण हैं। साथ ही बीमार व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को भी मास्क जरूर पहनना चाहिए।
सवाल: क्या कुछ महीनों के भीतर टीका तैयार हो सकता है?
सच्चाई: चीनी शोधकर्ताओं ने इसके लिए वायरस का आनुवांशिक अनुक्रम उपलब्ध कराया था। टीका विकसित करने में कई टीमें जुटी हैं। इसके लिए क्रमिक वृद्धिशील परीक्षणों की जरूरत होती है। यह लंबा समय लेता है और इसके दुष्प्रभाव भी देखे जा सकते हैं। व्यवसाय के लिए करीब एक साल में टीका बन जाएगा और यह काफी जल्द होगा।
सवाल: यदि कोई महामारी घोषित की जाती है तो इसके प्रसार को रोकने के लिए हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते?
सच्चाई: महामारी को दुनिया में नई बीमारी के रूप में परिभाषित किया जाता है। हालांकि महामारी घोषित करने की सीमा काफी अस्पष्ट है। व्यवहार में, हम चाहें महामारी घोषित करें या नहीं, उठाए जा रहे कदमों में कोई परिवर्तन नहीं होगा। रोकथाम उपाय बीमारी को पूरी तरह से खत्म करने के बारे में नहीं हैं।
सवाल: कोरोना से लड़ने में पुरुषों से बेहतर हैं महिलाएं?
सच्चाई: मृत्यु दर को देखें तो पता चलता है कि कोरोना वायरस के कारण पुरुषों की मृत्यु दर 2.8 फीसद और महिलाओं में 1.7 फीसद है। चाइनीज सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अध्ययन में यह बात सामने आई है। इससे पहले हांगकांग में सार्स वायरस के फैलने के कारण 2001 में 32 फीसद पुरुषों और 26 फीसद महिलाओं की मौत हुई थी। 2018 में इंफ्लूएंजा महामारी के वक्त भी महिलाओं के बेहतर इम्यून सिस्टम की बात सामने आई थी।
जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की वैज्ञानिक साबरा क्लाइन के मुताबिक इंसानों के श्वसन तंत्र में वायरल संक्रमण के मामलों में यह बात सामने आई है कि पुरुषों का इम्यून सिस्टम कमजोर और महिलाओं का बेहतर होता है। साथ ही समय-समय पर होने वाले टीकाकरण का महिलाओं पर बेहतर असर होता है।
source: Jagran.com