के संतोष |
क्षत्रपों और राजनीतिक दलों का अपना सियासी केंद्र होता है। बीएसपी राज में लखनऊ और नोएडा पर फोकस था तो अखिलेश सरकार में इटावा पर। अब चूंकि सीएम खुद गोरखपुर से हैं और पीएम का संसदीय क्षेत्र वाराणसी है तो ऐसे में केंद्र और राज्य का फोकस पूर्वांचल होना ही है।
भारतीय जनता पार्टी ने भी, लगता है, मान लिया है कि किसान आंदोलन के प्रभाव की वजह से उसे विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कम-से-कम सीटें ही मिल पाएंगी। यही कारण है कि अभी से उसका फोकस पूरी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रस्तावित दौरा कार्यक्रमों को देखने से तो यही लग रहा है। यही नहीं, यूपी के बजट और अभी 18 अगस्त को पेश अनुपूरक बजट से भी यही अंदाजा हो रहा है।
गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी का गृह जनपद है। वहीं, वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और अयोध्या बीजेपी की सियासत का केंद्र बिंदु है। पिछले तीन महीने में योगी के दौरों का 60 फीसदी समय इन्हीं तीन जिलों में गुजरा है। वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम और बाढ़ को लेकर वह दौरे पर रहे, तो अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के एक साल पूरे होने के बाद उन्होंने अधिकारियों संग समीक्षा बैठकें कीं। पिछले 45 दिनों में 10 दिन से अधिक समय योगी गोरखपुर में गुजार चुके हैं।
वैसे, बीजेपी का मिशन पूर्वांचल फरवरी महीने से चालू है जब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने वाराणसी में पार्टी कार्यालय के लोकार्पण के बहाने कार्यकर्ताओं को मंत्र दिया और प्रधानमंत्री मोदी ने 16 फरवरी को बहराइच के चित्तौरा में महाराज सुहेल देव के जरिये ‘मिशन पूर्वांचल’ का आगाज किया।
कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष विश्व विजय सिंह कहते हैं कि ‘ट्रस्ट द्वारा संचालित गोरखपुर के हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर अस्पताल में निजी सहयोग से लगी 9 करोड़ की मशीन के लोकार्पण कार्यक्रम में जिस प्रकार जनसभा हुई, वह योगी आदित्यनाथ की बेचैनी को दिखा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के गुस्से में बीजेपी की जमीन गायब हो चुकी है। उन्हें लगता है कि पूर्वांचल के किसान सड़कों पर नहीं हैं तो उनकी सियासी दाल गल जाएगी। ऐसा नहीं होने वाला। पूर्वांचल में जो उम्मीदें लोगों को उनसे थीं, वे पूरी नहीं हुईं। अब सरकारी धन से उड़ान भरकर मुख्यमंत्री फेस सेविंग कर रहे हैं।’
चुनाव करीब आते ही मुख्यमंत्री योगी का फोकस मेगा प्रोजेक्ट के लोकार्पण और शिलान्यास कार्यक्रमों पर है। 28 अगस्त को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद गोरखपुर में 300 करोड़ से प्रस्तावित आयुष विश्वविद्यालय के शिलान्यास के साथ ही महायोगी गुरु गोरक्षनाथ विश्वविद्यालय का लोकार्पण करेंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही महायोगी गुरु गोरक्षनाथ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। वहीं अक्टूबर में प्रधानमंत्री मोदी गोरखपुर एम्स और खाद कारखाना का लोकार्पण करेंगे। वैसे, समाजवादी पार्टी नेता जियाउल इस्लाम का कहना है कि ‘शिलापट्ट पर नाम की भूख जिस तरह योगी आदित्यनाथ को है, वैसी पहले किसी सीएम में नहीं देखी गई। सपा के कार्यों पर अपना नाम तो चस्पा कर ही रहे हैं, नगर निगम की सड़कों और नालियों के शिला पट्ट पर विपक्ष के पार्षदों का नाम हटाकर वह अपना नाम लिखवा रहे हैं।’
पूर्वांचल के प्रोजेक्ट पर धनवर्षा
फरवरी में प्रदेश सरकार द्वारा जारी बजट हो या 18 अगस्त को पेश अनुपूरक बजट- दोनों में पूर्वांचल में हो रहे विकास कार्यों पर धनवर्षा हुई है। बजट में पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के लिए 1,107 करोड़ रुपये और गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे के लिए 860 करोड़ रुपये आवंटित हुए। 22,494 करोड़ से लखनऊ से आजमगढ़ होते हुए गाजीपुर तक बन रहे पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे और 5,876 करोड़ की लागत से पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे से गोरखपुर को जोड़ने के लिए लिंक एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया जा रहा है। वाराणसी के साथ गोरखपुर में लाइट मेट्रो के लिए 100 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। यही नहीं, मिर्जापुर में विंध्याचल के लिए 30 करोड़ रुपये की व्यवस्था से विंध्यवासिनी धाम को भव्य स्वरूप देने की योजना भी बनाई गई है। पूर्वांचल के गाजीपुर, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, फतेहपुर, सिद्धार्थनगर, देवरिया में निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेजों का निर्माण कार्य पूरा करके प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू कराने की योजना है। इसके लिए बजट में 960 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। व्यापारी नेता अरण्य सिंह कहते हैं कि ‘सरकार जनता को एक मैसेज देना चाहती है कि पूर्वांचल का विकास सिर्फ बीजेपी ही कर सकती है। इसीलिए पूर्वांचल पर फोकस बढ़ा है। पार्टी सियासी माहौल को समझ रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसे जो कुछ मिलेगा वह बोनस ही होगा।’
वैसे, यह भी सच है कि बीजेपी ने जब पूर्वांचल में बेहतर प्रदर्शन किया है, तब ही उसे यूपी की सत्ता मिली है। 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में पहली बार पूर्वांचल के 28 जिलों की 162 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 115 सीट पर कब्जा जमाया था जबकि नब्बे के दशक की रामलहर में बीजेपी को पूर्वांचल में 82 सीटें ही मिली थीं। इसलिए एक बार फिर मुख्यमंत्री का फोकस वाराणसी, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, प्रयागराज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संत कबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, कौशाम्बी और आम्बेडकर नगर आदि जिलों पर है।
बस्ती में राजकीय महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आनंद पांडेय कहते हैं कि ‘क्षत्रपों और राजनीतिक दलों का अपना सियासी केंद्र होता है। बहुजन समाज पार्टी राज में लखनऊ और नोएडा पर फोकस था तो अखिलेश सरकार में इटावा क्षेत्र में फोकस था। अब चूंकि मुख्यमंत्री खुद गोरखपुर से हैं और प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी है तो ऐसे में केंद्र और राज्य का फोकस पूर्वांचल पर होना लाजमी है।’ वहीं लखनऊ के पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा की दलील है कि ‘जिस प्रकार निषाद पार्टी के मुखिया डॉ. संजय निषाद, अरविंद शर्मा और वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तरजीह दे रहे हैं, उससे योगी में बेचैनी भी है क्योंकि ये नेता कभी योगी के गुड लिस्ट में नहीं रहे हैं।’