उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भले ही अभी देरी हो, लेकिन छोटे दलों ने भी अपनी तैयारी तेज कर दी है। इन दलों को बारगेनिंग का मौका मिले इससे वह नए-नए पैतरे भी अजमा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भले ही अभी देरी हो, लेकिन छोटे दलों ने भी अपनी तैयारी तेज कर दी है। इन दलों को बारगेनिंग का मौका मिले इससे वह नए-नए पैतरे भी अजमा रहे हैं। सियासी समीकरण और गठजोड़ की भी रणनीति बना रहे हैं। जिससे वह चर्चा में बने रहें। यहां पर कई बाहरी राज्यों के दल भी अपने हांथ अजमाने की फिराक में हैं।
समाजवादी पार्टी के छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ने के एलान के बाद से ही यहां पर छोटे दलों ने अपनी सक्रियता और अधिक कर दी है। उन्हें लगता है कि वह किसी बड़े दल के साथ मिलकर एक आध सीट भी झटक लिए तो काम हो जाएगा।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2002 से ही छोटे दलों ने गठबंधन की राजनीति शुरू कर जातियों को सहेजने की पुरजोर कोशिश की है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर 2017 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। बीजेपी ने 2017 में अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ गठबंधन का प्रयोग किया था। भाजपा ने चुनाव में सुभासपा को 8 और अपना दल को 11 सीटें दीं तथा खुद 384 सीटों पर मैदान में रही। भाजपा को 312, सुभासपा को 4 और अपना दल एस को 9 सीटों पर जीत मिली थी। सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर मंत्री भी बने। लेकिन उन्होंने कुछ दिन बाद बगावत कर बीजेपी गठबंधन से नाता तोड़ लिया। अब एकबार फिर राजभर पर सभी दल डोरे डाल रहे हैं।
मौजूदा समय में ओमप्रकाश राजभर ने भाजपा को हराने के लिए कई छोटे दलों के साथ एक भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया है। जिसमें पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा अपना दल कमरावादी की राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल, राष्ट्रीय भागीदारी पार्टी (पी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेमचंद प्रजापति, राष्ट्र उदय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबू रामपाल, जनता क्रांति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल सिंह चौहान, भारत माता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामसागर बिंद और भारतीय वंचित समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम करण कश्यप आदि शामिल हैं।
सुभासपा के महासचिव अरूण राजभर का कहना है कि भाजपा को सत्ता से रोकने के लिए हमारी बहुत सारे दलों से बातचीत हो रही है। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राऊत, आम आदमी पार्टी के सांसद और प्रदेश प्रभारी संजय सिंह, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर से लगातार बात चल रही है। इसके साथ ही बंगाल तृणमूल कांग्रेस के महासचिव ने से भी संकल्प में शामिल होने की बात हो रही है।
अरूण ने बताया कि अभी रणनीति बन रही है। भाजपा को हराने का सशक्त मोर्चा बन रहा है। 5 मुख्यमंत्री और 20 डिप्टी सीएम का फार्मूला तय हो रहा है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि छोटे दल 5 वर्षों तक जमीन में कोई काम नहीं करते हैं और न संगठन के स्तर पर कोई काम करते हैं। वह चुनाव के समय बारगेनिंग के लिए आते हैं। जैसा की एआईएमआईएम के साथ अक्सर देखा है। बिहार में इनके अध्यक्ष जरूर कुछ सीमांचल में काम करते हैं। किसी अन्य राज्य में यह चुनाव लड़ने आते हैं। खासतौर से वह पार्टियां जो यूपी से नहीं है। जैसे कि मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी इनको संभावना लग रही है कि निषाद पार्टी पूर्वी यूपी के कुछ जिलों में अपनी पैठ बना चुकी है। यह भी उन्हीं इलाकों से सटे हुए बिहार के क्षेत्र में प्रभावी है। तो इन्हें भी लगता है कि अपनी गुंजाइश बनाएं। यह पार्टियां मूलत: सौदेबाजी के लिए आती हैं। पहली अपेक्षा सत्ताधारी से होती है। फिर मुख्य विपक्षी दल से जुड़ना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि जो भी छोटे दल जिन्होंने जाति आधारित राजनीति से अपनी शुरूआत की है। वह चुनाव जीतने का नहीं कुछ वोटों पर असर जरूर डालते हैं। यह अकेले दम पर कुछ नहीं कर सकते हैं। जैसे कि पिछले चुनाव में देखा गया है कि अपना दल और सुभासपा इनके वोट जब किसी बड़े दल के साथ मिलते हैं तो यह कुछ सीट निकालने में कामयाब होते हैं। लेकिन अकेले लड़ कर यह कोई मोर्चा बनाकर ज्यादा असर नहीं डाल पाएंगे। अब चुनाव दो ध्रवीय हो चुका है। एक तरफ या दूसरी तरफ ऐसे में छोटे दल की गुंजाइश और कम हो जाती है। चूंकि यूपी में विधानसभा चुनाव हैं ऐसे में बहुत सारे दल अपने लाभ के लिए आएंगे। लेकिन यह किसी का खेल बिगाड़ने में कामयाब होंगे ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है।
नवजीवन