गोरखपुर से 26 वर्ष की उम्र में 12वीं लोकसभा के सदस्य बने योगी आदित्यनाथ का सियासी कद उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के बाद मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेने के बाद तेजी से बढ़ा है। प्रदेश की सत्ता की कमान संभालने वाले योगी आदित्यनाथ की सरकार का कार्यकाल आज तीन वर्ष का हो गया है। योगी आदित्यनाथ ने अपने को भाजपा में पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बाद तीसरे सबसे कद्दावर नेता के रूप में स्थापित किया है।
योगी आदित्यनाथ 19 मार्च 2017 से पहले गोरखपुर से सांसद थे। योगी आदित्यनाथ पहली बार 1998 में गोरखपुर से सांसद बने। इसके बाद 1999, 2004, 2009 तथा 2014 में लोकसभा पहुंचे। तब से लेकर अब तक मुख्यमंत्री रहते हुए उनके तेवर अलग है। सूबे के सीएम के रूप में योगी आदित्यनाथ ने सूबे में अवैध बूचडख़ानों पर लगाम लगाने के साथ अपराधियों के एनकाउंटर के लिए पुलिस को खुली छूट देने जैसे कठोर फैसले लिए हैं। उन्होंने सीएए विरोधी प्रदर्शन पर लगाम लगाने के लिए पुलिस को प्रदर्शनकारियों से निपटने की हर तरह की छूट दी हुई है। इससे यह माना जा सकता है कि सूबे में अब तक 21 मुख्यमंत्रियों में योगी आदित्यनाथ ने सबसे कठोर सीएम के तौर पर अपनी छवि बनाई है। योगी आदित्यनाथ ने इसके बाद दिन-रात काम करके खुद को साबित कर दिखा। शायद इसी का नतीजा है कि भाजपा में पीएम मोदी व अमित शाह के बाद उन्होंने तीसरे सबसे कद्दावर नेता के तौर पर अपना सियासी कद बनाया है।
उत्तर प्रदेश की सत्ता में करीब 14 वर्ष का वनवास झेलने के बाद वापसी करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने गोरखपुर से भाजपा के सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री चुना। वह पार्टी के इस निर्णय पर खरे उतरे और उनकी सरकार ने अपने तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है। इस दौरान सत्ता के अनुभव की कमी के बावजूद योगी आदित्यनाथ ने कदम-कदम पर सीखने, समझने व एक्शन लेने में हिचक नहीं दिखाई। सूबे में भाजपा के इतिहास में योगी आदित्यनाथ पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा किया है। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ से पहले कल्याण सिंह दो बार मुख्यमंत्री रहे तो राम प्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह एक-एक बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं, लेकिन यह सभी अपना तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
नोएडा जाने का मिथक तोड़ा
योगी आदित्यनाथ ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की योजनाओं को उत्तर प्रदेश की जमीन पर उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने प्रदेश के अब तक के सभी सीएम के नोएडा न जाने का मिथक तोड़ा। वह एक नहीं दर्जन भर बार नोएडा पहुंचे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नोएडा आकर इस मिथक को तोडऩे का प्रयास किया कि सूबे का जो मुख्यमंत्री नोएडा आता है उसकी कुर्सी चली जाती है। वह एक बार नहीं बल्कि कई बार नोएडा आए। प्रदेश की राजनीति में यह एक मिथक है कि सीएम रहते वीपी सिंह, वीर बहादुर सिंह, नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव और मायावती ने नोएडा आए थे, जिसके बाद उनकी सरकार चली गई थी।
प्रयागराज में भव्य कुंभ के साथ क्राइम और करप्शन पर उनकी जीरो टॉलरेंस और दो बार सफल इन्वेस्टर्स समिट उनकी उपलब्धियों में हैं। सीएए विरोधियों पर कड़ा एक्शन और प्रदर्शनकारियों से जुर्माना वसूलने से लेकर हिंदुत्व की छवि को सीएम रहते हुए योगी आदित्यनाथ ने बरकरार रखा, उससे सरकार ही नहीं बल्कि पार्टी पर भी पकड़ मजबूत हुई है।
पार्टी के स्टार प्रचारक
योगी आदित्यनाथ ने गुजरात से लेकर कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी तथा अमित शाह के बाद सबसे अधिक रैलियां कीं। भाजपा ने कर्नाटक व त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय को सीएम योगी आदित्यनाथ के सहारे साधने का काम किया। पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में भाजपा के बेहतर नतीजों के पीछे सीएम योगी आदित्यनाथ की रैलियों का बड़ा योगदान माना जाता है।
संगठन और सरकार में बनाई पकड़
यूपी में मार्च 2017 में दो डिप्टी सीएम का फैसला होते ही साफ हो गया था कि सूबे में सत्ता के एक नहीं कई केंद्र होंगे। केशव प्रसाद मौर्य के साथ डॉ.दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया। इसके बावजूद सीएम योगी आदित्यनाथ ने तीन वर्ष में अपने कार्यों और राजनीतिक एजेंडे के जरिए जिस तरह भाजपा संगठन और सरकार पर पकड़ बनाई है, उसे हाल फिलहाल कोई चुनौती देता नहीं दिख रहा है।
बतौर सीएम रचा इतिहास
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन साल का सफर तय कर सूबे की भारतीय जनता पार्टी में नया इतिहास रचा है। उत्तर प्रदेश से भाजपा में अभी तक तीन वर्ष तक यूपी में कोई सीएम नहीं रह सका है। योगी आदित्यनाथ से पहले कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और राम प्रकाश गुप्ता यूपी के सीएम रह चुके हैं। भाजपा के 2017 में सत्ता में आने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में केशव मौर्य से लेकर दिनेश शर्मा, मनोज सिन्हा और महेश शर्मा तक के नाम की चर्चा थी। योगी आदित्यनाथ ने इन सारे नेताओं की अरमानों पर पानी फेर दिया। योगी आदित्यनाथ 19 मार्च 2017 को सूबे के मुख्यमंत्री बने।
भाजपा ने कल्याण सिंह दो बार और राम प्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह एक-एक बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। प्रदेश में 1991 में भाजपा की सरकार बनी थी और मुख्यमंत्री का ताज कल्याण सिंह के सिर सजा था। कल्याण सिंह ने अयोध्या राममंदिर के के लिए अपनी सत्ता की बलि चढ़ा दी थी। छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के चलते कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। वह एक वर्ष 165 दिन ही मुख्यमंत्री पद पर रह सके। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार दूसरी बार सितंबर 1997 में बनी।
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कल्याण सिंह विराजमान हुए थे। कल्याण सिंह इस बार दो साल 52 दिन ही सीएम पद पर रहे। इसके बाद भाजपा ने राम प्रकाश गुप्ता को 12 नवंबर 1999 को मुख्यमंत्री बनाया जो 28 अक्टूबर 2000 तक ही अपने पद पर रह सके। राम प्रकाश गुप्ता महज 351 दिन ही सीएम रहे। राम प्रकाश गुप्ता के बाद राजनाथ सिंह 2000 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। राजनाथ सिंह एक साल 131 दिन ही सीएम के पद पर रहे। 2002 में चुनाव हुए तो भाजपा की सत्ता में वापसी नहीं हो सकी। इसके 15 वर्ष के बाद 2017 में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला और मुख्यमंत्री का ताज योगी आदित्यनाथ के सिर सजा और वो वर्ष पूरा करने वाले भाजपा के पहले सीएम बने।
source: Jagran.com