रांची, कांके में लॉ छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म के 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। रांची सिविल कोर्ट के न्यायायुक्त नवनीत कुमार की अदालत ने घटना को जघन्य मानते हुए कहा कि दोषियों को अंतिम सांस तक जेल में रहना होगा। इसके अलावा 50-50 हजार रुपया जुर्माना भी लगाया गया है। यह पैसा पीडि़ता को मिलेगा। जुर्माना नहीं देने पर दोषियों को एक साल अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। सोमवार को दोपहर खचाखच भरी अदालत में करीब 15 मिनट की सुनवाई के बाद न्यायायुक्त ने सजा का ऐलान किया। इस दौरान दोषियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पेश किया गया। सजा सुनाए जाने के बाद पीडि़त पक्ष के अधिवक्ता ने जहां फैसले पर संतोष जताया, वहीं बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि वे इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगे।
जब अदालत ने बचाव पक्ष से पूछा, आप ही बताइए कितनी सजा दें
दोपहर 1.05 मिनट। अभियोजन पक्ष व बचाव पक्ष के अधिवक्ता कोर्ट रूम में प्रवेश करते हैं। इसके बाद डीजीपी केएन चौबे, डीआइजी एवी होमकर, एसएसपी अनीश गुप्ता, ग्रामीण एसपी ऋषभ झा आते हैं। 1.14 मिनट पर न्यायायुक्त नवनीत कुमार कोर्ट रूम में बैठते हैं। कार्यवाही शुरू होती है। बचाव पक्ष की ओर से एनसी दास खड़े होते हैं और दोषियों के कम उम्र और कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होने के तर्क के आधार पर कम से कम सजा की मांग करते हैं। उन्हीं की बातों को बचाव पक्ष के विनोद सिंह, ईश्वर दयाल, शंभू प्रसाद अग्रवाल भी दोहराते हैं। इस पर न्यायायुक्त ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आप ही बताइए कितनी सजा मिलनी चाहिए…। जो कानून में लिखा है उसी अनुरूप सजा सुनाई जाएगी। सामूहिक दुष्कर्म के मामले में रियायत का कोई विकल्प ही नहीं है।
जैसी घटना है निर्मम फांसी की सजा भी कम होगी
सजा सुनाए जाने से पूर्व पीडि़ता के अधिवक्ता अरविंद कुमार लाल ने अदालत से कहा कि यह सामान्य घटना नहीं है। बचाव पक्ष का यह कहना कि कम उम्र और पूर्व में कोई आपराधिक इतिहास नहीं है बिल्कुल हास्यास्पद है। पहले क्राइम नहीं किया, अब तो किया। उम्र कोई मायने नहीं रखता है। दोषियों के लिए फांसी की सजा भी कम है।
निर्भया केस की दलील पर गरमा-गरमी
अभियोजन पक्ष ने घटना को दिल्ली के निर्भया केस से जोड़ा। दलील दी गई कि दोनों घटनाओं में काफी समानता है। दोषियों पर किसी प्रकार की रहम नहीं होनी चाहिए। निर्भया कांड की दलील पर अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष में तीखी बहस हुई। बचाव पक्ष की ओर से कहा गया कि यह दलील ठीक नहीं है। दोनों अपराध अलग-अलग हैैं। इस पर अभियोजन पक्ष ने कहा कि अगर पीडि़ता का दोस्त ऐन मौके पर जान बचाकर नहीं भागता तो न तो वह बचता, न ही पीडि़ता।
अभियोजन पक्ष की टिप्पणी, दो घंटे तक पीडि़ता ने जहन्नुम की यातना सही
अभियोजन पक्ष की ओर से अदालत को बताया गया कि दो घंटे तक पीडि़ता ने जहन्नुम की यातना सही। इस दौरान उसके मानवीय अधिकार, कानून-व्यवस्था कोई मददगार साबित नहीं हुए। वो पूरी तरह दोषियों के कब्जे में थी और दोषी जो चाह रहे थे वही किया। सभी एक खिलौने की भांति पीडि़ता पर टूट पड़े। मनमर्जी की। जब यह घटना हुई तो उसके लिए समाज व सामाजिक व्यवस्था के कोई मायने नहीं बचे। 25 साल की युवती जो कानून पढ़कर दूसरों की मदद करना चाहती थी उसका जीवन खाक कर दिया गया। पीडि़ता को न्याय और समाज को संदेश देने के लिए कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए।
अदालत की टिप्पणी, सोसाइटी को झकझोरने वाली घटना है
अपने फैसले में अदालत ने टिप्पणी की कि परिस्थिति और मामले से जुड़े तथ्य के बीच संतुलन होना आवश्यक है। लॉ छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म समाज की चेतना को झकझोरने वाली घटना है। पीडि़ता जिस वेदना, जिस मानसिक प्रताडऩा से गुजरी इसको बयां करना मुश्किल है। घटना पूरी मानवता के खिलाफ है। दोषियों ने खुद तो अपराध किया ही, दूसरों को भी अपराध में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है। एक भी दोषी रहम के हकदार नहीं हैं।
इन्हें मिली सजा
कुलदीप उरांव, सुनील उरांव, संदीप तिर्की, अजय मुंडा, राजन उरांव, नवीन उरांव, बसंत कच्छप, रवि उरांव, रोहित उरांव, सुनील मुंडा एवं ऋषि उरांव। एक आरोपित नाबालिग निकला है। जिस पर अलग से मामला चलेगा।
अभियोजन पक्ष और पुलिस इस तरह मिलकर काम करेगी तो आरोपित बच नहीं पाएंगे। अभियोजन पक्ष के बेहतर कार्य का ही नतीजा है कि इतनी जल्दी आरोपित को सजा दिलवाई जा सकी। कमल नयन चौबे, डीजीपी।
source: DainikJagran