एक महीने के सेवा विस्तार की बैसाखियों पर टिके दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक दिल्ली चुनाव के बाद तमाम ‘आफतों’ को तकरीबन भूल ही चुके थे। पुलिसिया नौकरी के चंद आखिरी दिन इस कदर माथे पर बदनामी का ‘कलंक’ लगवा डालेंगे, इसकी कभी कल्पना उन्होंने नहीं की होगी।
शाहीन बाग को लेकर अजीब-ओ-गरीब कथित ‘शांति’ और उसके बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव के चुपचाप यानी शांति से निकल जाने की बेइंतहा खुशी और दोनों की खुशी में सराबोर दिल्ली पुलिस के ‘काम-चलाऊ’ कोतवाल। यानी एक महीने के ‘सेवा-विस्तार’ की बैसाखियों पर टिके-खड़े पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक अपने आगे-पीछे मंडरा रही बाकी तमाम ‘आफतों’ को तकरीबन भूल ही चुके थे। पुलिसिया नौकरी के चंद आखिरी दिन इस कदर माथे पर बदनामी का ‘कलंक’ लगवा डालेंगे, इसकी कभी कल्पना उन्होंने नहीं की होगी।
नौकरी के अंतिम पड़ाव पर होने वाली छीछालेदर का अगर उन्हें (पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक) जरा भी अहसास पहले हो गया होता तो, शायद वह कभी भी जान-बूझकर खुद को जमाने की नजर में ‘खलनायक’ बनने/बनाने देने की नहीं सोचते! न ही उनकी पुलिस कमिश्नरी के आखिरी दिनों में उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले का जाफराबाद देखते-देखते (24-25 फरवरी 2020) धूं-धूं कर हिंसा की आग में जल उठता।
न ही दिल्ली पुलिस के बेकसूर हवलदार रतन लाल के शहीद होने पर उनकी पत्नी पूनम असमय ‘मांग’ का सिंदूर पोंछकर बाकी बची तमाम उम्र वैधव्य का कलंक भोगने को लाचार होती। न ही जांबाज रतन लाल की 13 और 10 साल की दो मासूम बेटियां। 8 साल का बेटा राम। बाकी पहाड़ सी बची तमाम उम्र के सीने पर सिर से पिता का साया हटवाने का कलंक ढोने को मजबूर होते। न भारतीय खुफिया एजेंसी (इंटेलीजेंस ब्यूरो) का युवा सिपाही अंकित शर्मा जाफराबाद की हिंसा में बेमौत मारे जाने के बाद एक नाले से ‘शव’ के ्नरूप में लावारिस हाल में बरामद होता।
दिल्ली पुलिस की आने वाली पीढ़ियां जब-जब महकमे का इतिहास खंगालेंगी, तब-तब उन्हें जाफराबाद की हिंसा में 26 फरवरी 2020 की शाम 8 बजे तक मर चुके 25 लोगों की मौत भी दस्तावेजों में लिखी दिखाई पड़ेगी। पुलिस की आने वाली पीढ़ियों के सामने जब-जब चर्चा, अमूल्य पटनायक की पुलिस कमिश्नरी (कार्यकाल) का होगा, तब-तब भला दिल्ली पुलिस के इतिहास में दर्ज 2 नवंबर 2019 की वो मनहूस दोपहर भी भला कोई कैसे और क्यों भूल पाएगा?
जिस मनहूस दिन उत्तरी दिल्ली जिले में स्थित तीस-हजारी अदालत में सैकड़ों पुलिस वालों को ‘अकाल-मौत’ सामने खड़ी दिखाई दे रही थी। क्या उत्तरी जिले की डीसीपी मोनिका भारद्वाज? क्या एडिश्नल डीसीपी हरेंद्र सिंह? क्या एसीपी, इंस्पेक्टर, दारोगा, हवलदार-सिपाही? शायद ही ऐसा कोई बचा हो जिसे उस मनहूस शाम और दोपहर खुद की मौत सामने खड़ी नजर न आ गई हो। तीस हजारी कांड में दिल्ली पुलिस के तमाम दिलेर (पुलिस वाले) हाथ-पैर तुड़वाए और सिर फुड़वाए अस्पतालों में पड़े मौत से जिंदगी की भीख के लिए कराह-गिड़गिड़ा रहे थे।
पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक का दिल मगर नहीं पसीजा। खुद की कुर्सी बचाने में मसरुफ अमूल्य पटनायक की पिटी पुलिस अस्पताल में बेहाल थी। कमिश्नर को मगर उस बेहाली में भी अपनों का ख्याल नहीं आया। इसकी गवाह बनी वो मनहूस तारीख जब, घटना के अगले दिन महकमे के मुखिया मीडिया में हो रही खुद की छीछालेदर से बेहाल अपनों के जख्म देखने की रस्म अदायगी करने अस्पताल पहुंचे थे।
यह अलग बात है कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को ‘खलनायक’ बना देख दिल्ली पुलिस का इंस्पेक्टर, सब-इंस्पेक्टर, दारोगा-थानेदार-हलवदार-सिपाही का तबका आपा खो बैठा। नतीजा यह हुआ कि कमिश्नर को काबू करके उन्हें हकीकत से रु-ब-रु कराने के लिए 5 नवंबर 2019 को हवलदार-सिपाहियों ने दिल्ली पुलिस मुख्यालय (आईटीओ स्थित) घेर लिया और अपने ही हवलदार-सिपाहियों की भीड़ ने घेर लिया मुख्यालय में बैठे पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को। अपनों द्वारा ही जब पटनायक की सड़क पर खुलेआम बेइज्जती और छीछालेदर की गई, तब उन्हें लगा कि इज्जत-बेइज्जती का अहसास आखिर होता कितना कड़वा है?
तीस हजारी कांड की आग शांत नहीं हुई। इसके तुरंत बाद जामिया-जाकिर नगर में हिंसा भड़क गई। शाहीन बाग में महीनों लंबा शुरू हुआ धरना आज भी बदस्तूर जारी है। सड़क का कुछ हिस्सा करीब दो महीने बाद खुलवा दिया गया। इसके बाद भी आम राहगीर ‘जाम’ से त्रस्त है। फिर भी दिल्ली में सब कुछ बंदोबस्त ‘दुरुस्त’ है।
इन तमाम झंझावतों के बाद भी अमूल्य पटनायक को एक महीने का सेवा-विस्तार मिला तो दिल्ली पुलिस का इतिहास एक बार फिर बदल गया। अमूल्य पटनायक दिल्ली के वो पहले पुलिस कमिश्नर साबित हुए जिन्हें सेवा विस्तार दिया गया हो। सेवा विस्तार मिलते ही विधानसभा चुनाव ठीक-ठाक निकलवा दिए। हां यह जरुर अमूल्य पटनायक के लिए तारीफ की बात है। लेकिन यह खुशी अभी वह ठीक से मना भी नहीं पाए थे कि जाफराबाद जल उठा। मतलब सेवा-विस्तार मिलने की खुशी ‘इंज्वाय’ भी नहीं कर पाए और शहर में बवाल मच गया।
रही सही कसर तब पूरी हो गई, जब जाफराबाद के बाद हिंसा मौजपुर, करावल नगर होते हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में फैल गई। हिंसा भड़कने के तकरीबन 72 घंटे बाद खुद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को 12 घंटे के अंदर दो बार उत्तर पूर्वी जिला में डेरा डालना पड़ा। सबसे बड़ी बात ये रही कि 26 फरवरी को एनएसए की बैठक में दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त सतीश गोलचा, सच्चिदानंद श्रीवास्तव, डीसीपी वेदप्रकाश सूर्य सहित तमाम आला अफसर मौजूद रहे, सिवाय पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक के।
source: NavjivanIndia