लखनऊ ।। आज इस्लामी केलेन्डर के साल का पहला दिन है, लेकिन आज साल के पहले दिन (पहली मोहर्रम) को मुसलमानों का हर वर्ग ख़ुशी नहीं बल्कि ग़म मनाता है। वजह ये है कि सुन्नी हज़रात के ख़लीफा हज़रत उमर फारूख़ की वफात (पुण्यतिथि)का दिन है।
शिया और सुन्नी हज़रात मोहर्रम को ग़म का महीना मानते हैं। मुसलमानों के पैग़म्बर हजरत मोहम्मद के नाती हज़रत इमाम हुसैंन और उनके 72 साथियों की शहादत के शोक का सिलसिला आज से शुरू हो जाता है।
पहली मोहर्रम से सुन्नी, शिया और कुछ हिन्दू भाई ताज़िया रखते हैं। मानवता को बचाने के लिए सबकुछ क़ुरबान कर देने वाले इमाम हुसैन की याद में आज से अज़ादारी/ताज़िएदारी (ग़म के दिनों) का सिलसिला शुरू होता है और मुसलमानों यानी अल्पसंख्यकों के ग़म के इस ग़मग़ीन दिन पर उ.प्र.कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन शाहनवाज आलम साहब ने मुसलमानों को मुबारकबाद दी है।
मोहर्रम के ग़म और हज़रत उमर की शहादत के दिन मुबारकबाद देकर शिया-सुन्नी और समस्त अल्पसंख्यकों को नाराज़ करने वाले कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के चैयरमैन की ये पोस्ट देखकर मुझे रजनीगंधा का विज्ञापन याद आ गया-
“यूं हीं नहीं मैं, मैं बन जाता हूं,
यूं ही नहीं मैं रजनीगंधा बन जाता हूं।”
मेहनत करनी पड़ती है।
वैसे ही जैसे कांग्रेस की नइया डुबोने में काफी मेहनत की जा रही है।
– नवेद शिकोह
(लेखक उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, विचार उनके निजी हैं)