झारखंड के नक्सल प्रभावित जिला खूंटी के एक छोटे से गांव हेसल की रहने वाली पुंडी सारू ने एक सपना देखा था। सपना था हॉकी के मैदान में दौड़ते-दौड़ते सात समुद्र पार जाने की। वहीं भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाज मयंक अग्रवाल ने अभ्यास मैच की दूसरी पारी में 82 रनों का पारी खेल फॉर्म में वापसी की।
झारखंड के नक्सल प्रभावित जिला खूंटी के एक छोटे से गांव हेसल की रहने वाली पुंडी सारू ने एक सपना देखा था। सपना था हॉकी के मैदान में दौड़ते-दौड़ते सात समुद्र पार जाने की। पुंडी के उस सपने को अब पंख लग चुका है। पुंडी खूंटी के हेसल गांव से निकलकर सीधे अमेरिका जाने वाली है। लेकिन जरा ठहरिए, पुंडी के इस सपने के सच होने की कहानी इतनी आसान नहीं रही। काफी संघर्ष के बाद पुंडी का यह सपना पूरा हुआ है।
पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर की पुंडी का बड़ा भाई सहारा सारू इंटर (12वीं) तक की पढ़ाई कर छोड़ चुका है। पुंडी नौंवी कक्षा की छात्रा है। पुंडी की एक और बड़ी बहन थी, जो अब नहीं रही। पिछले साल मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो जाने के कारण उसने अपने गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। उस वक्त पुंडी टूट चुकी थी।
उस दौर में पुंडी दो महीने तक हॉकी से दूर रही थी, मगर वह हॉकी को भूली नहीं थी। पुंडी के पिता एतवा उरांव अब घर में रहते हैं। पहले वे दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे। मजदूरी करने के लिए हर दिन साइकिल से खूंटी जाते थे। वर्ष 2012 में एक दिन साइकिल से लौटने के दौरान किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी, जिससे उनका हाथ टूट गया। प्लास्टर से हाथ जुड़ गया, लेकिन उसके बाद से वे मजदूरी करने लायक नहीं रहे।
पुंडी बताती है कि तीन साल पहले जब उसने हॉकी खेलना शुरू किया था और झारखंड के अन्य हॉकी खिलाड़ियों की तरह नाम रौशन करने का सपना देखा था, तब उसके पास हॉकी स्टिक तक नहीं थी। पुंडी ने बताया, “हॉकी स्टिक खरीदने के लिए घर में पैसे नहीं थे, तब मैंने मडुआ (एक प्रकार का अनाज) बेचा और छात्रवृत्ति में मिले 1500 रुपये को उसमें जोड़कर हॉकी स्टिक खरीदी।”
पुंडी के पिता एतवा सारू जानवरों को चराने का काम करते हैं। मां चंदू घर का काम करती है। घर की पूरी अर्थव्यवस्था खेती और जानवरों के भरण पोषण और उसके खरीद बिक्री पर निर्भर है। घर में गाय, बैल, मुर्गा, भेड़ और बकरी है। पुंडी से उसकी दिनचर्या के बारे में पूछा तो उसने कहा, “पिछले तीन साल से हर दिन अपने गांव से आठ किलोमीटर साइकिल चलाकर हॉकी खेलने खूंटी के बिरसा मैदान जाती हूं।” खूंटी में खेलते हुए पुंडी कई ट्रॉफी जीत चुकी है। पुंडी के प्रशिक्षक भी उसके मेहनत के कायल हैं। वे कहते हैं कि पुंडी मैदान में खूब पसीना बहाती है।
झारखंड के नक्सल प्रभावित जिला खूंटी के एक छोटे से गांव हेसल की रहने वाली पुंडी सारू ने एक सपना देखा था। सपना था हॉकी के मैदान में दौड़ते-दौड़ते सात समुद्र पार जाने की। पुंडी के उस सपने को अब पंख लग चुका है। पुंडी खूंटी के हेसल गांव से निकलकर सीधे अमेरिका जाने वाली है। लेकिन जरा ठहरिए, पुंडी के इस सपने के सच होने की कहानी इतनी आसान नहीं रही। काफी संघर्ष के बाद पुंडी का यह सपना पूरा हुआ है।
पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर की पुंडी का बड़ा भाई सहारा सारू इंटर (12वीं) तक की पढ़ाई कर छोड़ चुका है। पुंडी नौंवी कक्षा की छात्रा है। पुंडी की एक और बड़ी बहन थी, जो अब नहीं रही। पिछले साल मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो जाने के कारण उसने अपने गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। उस वक्त पुंडी टूट चुकी थी।
उस दौर में पुंडी दो महीने तक हॉकी से दूर रही थी, मगर वह हॉकी को भूली नहीं थी। पुंडी के पिता एतवा उरांव अब घर में रहते हैं। पहले वे दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे। मजदूरी करने के लिए हर दिन साइकिल से खूंटी जाते थे। वर्ष 2012 में एक दिन साइकिल से लौटने के दौरान किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी, जिससे उनका हाथ टूट गया। प्लास्टर से हाथ जुड़ गया, लेकिन उसके बाद से वे मजदूरी करने लायक नहीं रहे।
पुंडी बताती है कि तीन साल पहले जब उसने हॉकी खेलना शुरू किया था और झारखंड के अन्य हॉकी खिलाड़ियों की तरह नाम रौशन करने का सपना देखा था, तब उसके पास हॉकी स्टिक तक नहीं थी। पुंडी ने बताया, “हॉकी स्टिक खरीदने के लिए घर में पैसे नहीं थे, तब मैंने मडुआ (एक प्रकार का अनाज) बेचा और छात्रवृत्ति में मिले 1500 रुपये को उसमें जोड़कर हॉकी स्टिक खरीदी।”
पुंडी के पिता एतवा सारू जानवरों को चराने का काम करते हैं। मां चंदू घर का काम करती है। घर की पूरी अर्थव्यवस्था खेती और जानवरों के भरण पोषण और उसके खरीद बिक्री पर निर्भर है। घर में गाय, बैल, मुर्गा, भेड़ और बकरी है। पुंडी से उसकी दिनचर्या के बारे में पूछा तो उसने कहा, “पिछले तीन साल से हर दिन अपने गांव से आठ किलोमीटर साइकिल चलाकर हॉकी खेलने खूंटी के बिरसा मैदान जाती हूं।” खूंटी में खेलते हुए पुंडी कई ट्रॉफी जीत चुकी है। पुंडी के प्रशिक्षक भी उसके मेहनत के कायल हैं। वे कहते हैं कि पुंडी मैदान में खूब पसीना बहाती है।
ईशांत को अरुण जेटली स्टेडियम में विदर्भ के खिलाफ रणजी ट्रॉफी मैच में टखने में चोट लग गई थी। यह चोट ग्रेड-3 की थी जिसके कारण ईशांत को छह सप्ताह आराम करने की सलाह दी गई थी।
दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के निदेशक संजय भारद्वाज ने आईएएनएस से कहा था कि तेज गेंदबाज न्यूजीलैंड सीरीज से बाहर हो गए हैं क्योंकि उन्हें छह सप्ताह तक आराम करने की सलाह दी गई है।
उन्होंने कहा था, “उन्हें पूरी तरह से छह सप्ताह तक आराम करने की सलाह दी गई है। इसलिए इसकी बेहद कम संभावना है कि वह अगले महीने न्यूजीलैंड जा पाएं। जब वह राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी जाएंगे तब पता चलेगा कि उनकी स्थिति क्या है और वह कब ठीक तरह से चल सकते हैं।”
source: NavjeevanIndia