उ.प्र. राज्य के जनपद झाँसी में ब्लॉक के ग्राम के प्राथमिक स्कूल में पढ़ने वाली छात्रा स्व. कु. छाया की करुणामय दास्तान
सरकारी स्कूल के बाहर एक बरगद के पेड़ के नीचे बने बड़े से चौक पर खुद को मई की तपती धूप से बचाते हुए एक कोने में घुटनों को पेट की तरफ़ मोडे हुए गठरी बनी एक हाड़ माँस की काया लम्बी लम्बी साँसें लेते हुए जाने एक टक आसमान की तरफ़ क्या निहार रही थी ।
इसी समय स्कूल की तरफ़ आती हुयी एक चार पहिया गाड़ी को देखकर बाहर खेल रहे बच्चे शोर मचाने लगे जिससे घबराकर चौक पे लेती वो लड़की वहाँ से लड़खड़ाती हुई धीरे धीरे आगे कहीँ चली गयी ।
गाड़ी से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम ने उतर कर स्कूल के आसपास के वातावरण का जायेजा लिया और फ़िर आसपास खेल रहे बच्चो को स्कूल चलने के लिये बोले ।
टीम द्वारा आज स्कूल में तय तिथि परबच्चो का स्वास्थ्य परीक्षण होना है । एक एक करके सभी बच्चो का लम्बाई वजन / समान्य जाँच / आँखो एवं दाँतों की जाँच डा . ऋषि राज एवं डा .ब्रिषालि यादव द्वारा की जा रही थी ।
टीम के अन्य सदस्य डा. हैदर एवं टीना शर्मा द्वारा बच्चो एवं स्कूल स्टाफ को स्वास्थ्य एवं स्वच्छता से सम्बन्धित जानकारी दी जा रही थी ।
इसी बीच वहाँ मौजूद शिक्षिका श्रीमती सुमन ने एक बच्ची की बीमारी के बारे में बताया जो अपनी बीमारी के कारण स्कूल नहीँ आ रही थी ।
टीम ने तुरंत उस बच्ची को और उसके अभिभावकों को स्कूल बुलवाया ।
यह वही बच्ची थी जो कुछ देर पहले गठरी बनी पेड़ की छाया में लेटी थी । उसके साथ उसकी दादी आयी थी ।
खामोश खड़ी हुई बच्ची ने उसका नाम पूछे जाने पर एक बार अपनी दादी की तरफ़ देखते हुए घबराते हुए अपना नाम छाया बताया ।
डा. ब्रिषालि द्वारा उसको प्यार से बहला कर उसकी जाँच करने पर पता चला की छाया तो खून की कमी के साथ साथ साँस लेने में दिक्कत है और वह बहुत कुपोषित अवस्था में है । दो कदम भी चलना उसके लिये दूभर है । 11 साल की बच्ची छाया को तत्काल मेडिकल कालेज संदर्भित किये जाने की बात पर उसकी दादी ने मायूसी जतायी और जाने से मना कर दिया ।
टीम द्वारा कारण पूछे जाने पर दादी ने बताया के छाया की माँ नहीँ है । बाप मज़दूरी पर जाता है । एक बहन है बड़ी तो वह नानी के घर पर रहती है । इसलिये छाया को अगर भर्ती करायेंगे तो कौन उसकी देखभाल करेगा ।
टीम द्वारा और स्कूल के शिक्षिका द्वारा समझाये जाने पर छाया की दादी अगले दिन छाया को मेडिकल लाने को राजी हो गयी ।
टीम द्वारा गाँव के लोगो से पूछ ताछ के दौरान पता चला कि छाया के पैदा होने के छः माह बाद ही उसकी माँ ने फाँसी लगा के आत्महत्या कर ली थी ।* *कोई कहता है दो बेटियों को जन्म देने के कारण लोगो के ताने सुनते सुनते तंग आ गयी थी तो कुछ का कहना था के छाया के पिता के ऊपर कर्ज़ बहुत था और वह शराब भी बहुत पीता था जिसके चलते आये दिन बकायेदार दरवाजे पे आकर गाली गलौज करते थे और वोह खुद शराब के नशे में सारा गुस्सा छाया की माँ पर उतार देता था ।* *मज़दूरी से ना ही तो घर का कुछ हला भला हो रहा था ना ही बच्चीया ढंग से पल पा रही थी ।* *इन्ही सब बातों से तंग आकर छाया की माँ ने फाँसी लगा ली थी ।*
अगले दिन छाया मेडिकल कालेज अपनी दादी के साथ आयी जहाँ आर बी एस के टीम से डा . ब्रिषालि और डा . हैदर ने उनको एमर्जेन्सी में भर्ती कराया । छाया की जांचों की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी ।
हीमोग्लोबीन मात्र 3% होने के कारण छाया को तुरंत खून चढ़ना था किन्तु छाया के साथ सिर्फ़ उसकी दादी थी जो अधिक उम्र के कारण रक्तदान नहीँ कर सकती थी । छाया और उसकी दादी टकटकी लगाये एक दूसरे को देखते तो कभी हसरत भरी निगाहों से दोनों डाक्टरों की तरफ़ देखते ।
ईश्वर के इशारे को समझते हुये आर बी एस के टीम के डा .हैदर ने तुरंत एक यूनिट रक्तदान करने का फैसला किया और उसी दिन छाया को एक यूनिट रक्त उपलब्ध हो गया ।
अगले दिन छाया की हालत में सुधार था मगर आज भी उसे और खून की ज़रूरत थी । इस बार फ़िर ईश्वर के इशारे को समझते हुए आर बी एस के टीम के श्री शिव कुमार पटेल ने एक यूनिट रक्तदान किया और इस तरह छाया को दो यूनिट रक्त चढ़ाया गया ।
तीसरे दिन छाया की हालत सुधरने पर उसे एमर्जेन्सी से वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया ।
बेहतरीन चिकित्सा सेवा के चलते 6 दिन बाद छाया अब काफी बेहतर मेहसूस कर रही थी । वह अब बिना थके चल रही थी और उसकी साँस भी सामान्य थी । हीमोग्लोबीन भी आश्चर्जनक रूप से 6 दिन में 8% हो गया था ।
छाया की दादी और छाया आर बी एस के टीम को धन्यवाद दे रहे थे और आर बी एस के टीम ईश्वर का धन्यवाद दे रही थी कि ईश्वर ने उन्हे इस पुनीत कार्य के लिये चुना।
छाया ठीक होकर अपने घर चली गयी । डा . ने उसे आराम करने और अच्छी तरह से खाने पीने की सलाह देकर पंद्रह दिन बाद आने को बोला ।
पंद्रह दिन गुज़र जाने के बाद भी जब छाया नहीँ आयी तो आर बी एस के टीम के श्री पटेल उसके गाँव गये और उसका हाल चाल लिया । छाया के पिता और दादी सब बहुत खुश थे । गाँव वाले भी सरकार की इस महत्वपूर्ण योजना की भूरि भूरि प्रशंसा कर रहे थे । गाँव वालो के इस आदर सत्कार से टीम का सीना गर्व चौड़ा हो गया और मन ही मन गर्व भी महसूस हो रहा था ।
कुछ दिन गुज़र गये मगर छाया दुबारा दिखाने नहीँ आयी । टीम द्वारा जब उसके पिता को फोन करके उसकी खैरियत पूछी गयी तो उधर से जो जवाब मिला उसे सुनकर सारी टीम के लोग स्तब्ध रह गये । छाया के पिता ने बताया के छाया इस दुनिया से चल बसी है वह अपनी माँ की गोद में चली गयी ।
समस्त टीम सदस्यों के लिये यह एक अफ़सोस का वक्त तो था मगर सब अंदर ही अंदर सोच रहे थे के आखिर चूक कहाँ हो गयी ??
छाया के जैसी जाने कितनी जिंदगियां ऐसे ही जानलेवा बीमारियों की भेंट चढ़ जाती है ।
भारत सरकार के इस स्वास्थ्य मिशन को हम सभी राष्ट्रीय बाल स्वास्थय कार्येक्रम के टीम सदस्यों को साकार बनाना है ताकि फ़िर किसी की छाया ना छिन सके ।
सुनने लिखने और पढ़ने में छोटी सी कहानी लेकिन कई सवाल कटाक्ष हम सभी पर…
-क्या ज़िम्मेदार केवल स्वास्थ्य विभाग है बाकि पंचायतराज, और कुपोषण को समर्पित ICDS, बेसिक शिक्षा कोई नहीं??
-एक बच्ची खून की कमी से ग्रसित थी क्या कर रहे थे बाकि विभाग के प्रतिनिधि??
-क्या ज़िम्मेदारी सिर्फ विभागों की है वहां रह रहे अड़ोसी पडोसी किसी को नहीं दिखा जो वाह वाही करने आ गए और जब बच्ची मौत के मुंह में थी किसी को नहीं सूझा कम से कम उस टीम को ही फोन कर देते जो उसको मौत के मुंह से खींच कर लायी थी।
-उसके बाप की तो क्या कहेँ शायद बिटिया तो बोझ होती है लेकिन दादी तुम भी तो स्त्री थी तुम क्यों न बोली और इंतज़ार किया उस बेबस निरीह बच्ची के मारने हाँ क़त्ल का , उस बच्ची के क़त्ल में तुम भी भागीदार हो और उन लोगो की भावनाओं के क़त्ल की भी जो अपने काम से बढ़कर उस बच्ची के लिए भागे जिनकी वो कुछ नहीं लगती थी।
-वो मीडिया जो अगर उस बच्ची को कुछ अस्पताल में हुआ होता तो चीख चीख कर ढिंढोरा पीट रहा होता कि डॉक्टर की लापरवाही से मौत हुई, तुम्हारी नज़रे क्यों नहीं जाती उस सड़ती मरती मानवीयता पर जहाँ इतने बड़े गाँव में कोई प्रधान और पंचायत सदस्य बोलेरो और स्कार्पियो के आगे प्रधान लिखे घूमते है उन पर प्रश्नचिन्ह क्यों नहीं??
सवाल बहुत हैं और बहुतों पर हैं हम दुःखी हैं लेकिन निराश बिलकुल नहीं, हमारा मिशन , हमारा अभिनव प्रयास इनके लिए ही है ।
हे प्रभु हमको इतनी शक्ति देना, सामर्थ्य देना, प्रेरणा देना,भाव देना कि हम अपने मार्ग पर अडिग रहे, सतत चलते रहें
(सच पर आधारित कहानी)
डा . शुजाअत हैदर जाफरी
फिजियोथिरैपिस्ट
आर बी एस के
उ.प्र. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन