कोरोना वायरस के संक्रमण का दूसरा दौर सर्दियों में सामने आ सकता है। यह बात एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने कही है। उन्होंने कहा कि हमें कोरोना से हाल फिलहाल निजात नहीं मिलने वाली।
दुनिया भर में कहर बरपा रहे कोरोना वायरस से हाल फिलहाल मुक्ति नहीं मिलने वाली और हो सकता है कि आने वाले साल इस वायरस का असर सामने रहे। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) दिल्ली के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कोरोना वायरस के प्रकोप का दूसरा दौर सर्दियों में देखने को मिलने की आशंका है। इंडियन एक्स्प्रेस अखबार के एक कार्यक्रम में डॉ गुलेरिया ने कहा कि, “हमें इस महामारी को लंबे समय के लिए देखना चाहिए जोकि एक साल से अधिक भी हो सकता है।” उन्होंने कहा कि ऐसे में कोरना हॉटस्पॉट पर फोकस करने की जरूरत है ताकि इसका प्रसार रोका जा सके।
डॉ गुलेरिया ने कहा कि, “कोरोना की मौजूदगी के चलते हमें अपनी रणनीतियां अलग तरह से बनानी होंगी। देश के अलग-अलग हिस्सों के लिए अलग-अलग रणनीति बनाने की जरूरत है। के ही फार्मूला सब जगह लागू नहीं हो सकता। खासतौर से हॉटस्पॉट्स की कड़ी निगरानी की जरूरत है।”
गौरतलब है कि डॉ गुलेरिया उस टीम का हिस्सा है जो कोरोना महामारी से निपटने की रणनीति बनाने के लिए गठित की गई है। उन्होंने कहा कि कोरोना का प्रसार रोकने में आम लोगों की भागीदारी बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि इस बारे में अब निजी क्षेत्र को भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। डॉ गुलेरिया के मुताबिक अभी तक प्राइवेट अस्पतालों ने इस बीमारी से लड़ने में कोई खास भूमिका नहीं निभाई है।
अब हालांकि लॉकडाउन का तीसरा दौर शुरु हो चुका है, लेकिन साथ ही धीरे-धीरे गतिविधियां भी शुरु की जा रही हैं, ऐसे में डॉ गुलेरिया का मानना है कि इस समय जरूरत है कि अस्पतालों में पर्याप्त बेड, पैरा मेडिकल स्टाफ, आईसीयू और वेंटिलेटर्स उपलब्ध होने चाहिए।
डॉ गुलेरिया ने कहा कि सरकार को वायरस की रोकथाम और आर्थिक गतिविधियों के बीच एक संतुलन बनाकर रखने की जरूरत है और इसके लिए तय नियमों का पालन कराना बहुत जरूरी है।
एंटीबॉटी टेस्ट नहीं है कोरोना का परीक्षण: डॉ गुलेरिया
डॉ गुलेरिया ने कहा कि कोरोना की पहचान के दौरान एंटीबॉडी टेस्ट को कोरोना के परीक्षण के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोरोना के टेस्ट के लिए भी भी नाक और हलक से लिए गए सैंपल ही जरूर हैं। एंटीबॉडी टेस्ट सिर्फ निगरानी के लिए इस्तेमाल हो सकते हैं न कि कोरोना का पता लगाने के लिए। उन्होंने कहा कि कोरोना से लड़ाई समुदाय स्तर पर लड़े जाने की जरूरत है न कि अस्पताल के स्तर पर। उन्होंने कहा कि यह सच है कि कोरोना मामले बढ़ने का ग्राफ अभी भी नीचे नहीं जा रहा है। उनके मुताबिक, “आर्थिक गतिविधियों में सोशल डिस्टेंसिंग को अब सामान्य जीवन का हिस्सा मान लेना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि, “कोरोना के इलाज के लिए कई रिसर्च पर काम करने की जरूरत है, इनमें से एक है प्लाज्मा थेरेपी। लेकिन इसके नतीजे आने में दो-तीन महीने लग सकते हैं।”