पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश पर इस समय तिहरा खतरा छाया हुआ है, और ये तीन खतरें हैं सामाजिक असमानता और वैमनस्यता, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य महामारी। उन्होंने कहा है कि समाज में फैली अशांति और आर्थिक तबाही हमारी खुद की देन है, जबकि कोरोनावायरस बीमारी बाहर सेआई है।
अंग्रेजी अखबार द हिंदू में लिखे लेख में मनमोहन सिंह ने कहा है कि “मुझे गहरी चिंता है कि जोखिमों और संकट की यह मजबूत तिकड़ी न सिर्फ देश की आत्मा को छिन्न-भिन्न कर सकती है, बल्कि विश्व में आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में हमारी स्थिति को कम कर सकती है।“
डॉ मनमोहन सिंह ने अपने लेख में दिल्ली दंगो का भी जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि, “बीते सप्ताह दिल्ली में जबरदस्त हिंसा हुई और बिन वजह 50 से ज्यादा नागरिकों की जान चली गई, सैकड़ों जख्मी हुए। यह हिंसा हमारे राजनीतिक वर्ग औरअनियंत्रित वरगों द्वारा फैलाई गई धार्मिक असहिष्णुता की लपटों से निकली थी।“ मनमोहन सिंह ने विश्वविद्यालयों में हो रही हिंसा की तरफ इशारा करते हुए लिखा है कि, “विश्वविद्यालय के परिसर, सार्वजनिक स्थान और आम लोगों के घरों को सांप्रदायिक हिंसा का निशाना बनाया जा रहा है जो हमें इतिहास के काले पन्नों की याद दिलाता है।“ उन्होंने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा है कि “कानून और व्यवस्था कायम करने वाली संस्थाएं लोगों की रक्षा का अपना धर्म नहीं निभा रही हैं।“ साथ ही मीडिया न्यायपालिका की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा है कि, “न्याय के संस्थान और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ, मीडिया, ने भी हमें निराश किया है।“
पूर्व प्रधानमंत्री ने समाज में बढ़ती नफरत की तरफ इशारा करते हुए लिखा है कि, “देश भर में सामाजिक तनाव बिना रोकटोक तेजी से बढ़ रहा है जिससे देश की आत्मा घायल हो रही है। इसे रोक भी सिर्फ वही सकते हैं जिन्होंने यह आग लगाई है।”
उन्होंने लिखा है कि, “मौजूदा हिंसा के सही ठहराने के लिए पूर्व में हुई हिंसा और भारत के इतिहास को सामने रखना व्यर्थ है। हिंसा का हर क्षण और हर कृत्य महात्मा गांधी के सपनों के भारत पर धब्बा है।” उन्होंने देश की विकट आर्थिक स्थिति के लिए भी इसी सांप्रदायिक कारणों को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने लिखा है कि कुछ ही साल में भारत की छवि एक उदारवादी लोकतांत्रिक तरीकों से आर्थिक विकास करने वाले देश से बिगड़कर एक आर्थिक रूप से संघर्षरत बहुसंख्यावादी राष्ट्र के रूप में हो गई है।
मौजूदा हालात के खतरों को उजागर करते हुए डॉ मनमोहन सिंह ने लिखा है कि, “ऐसे समय में जब देश आर्थिक रूप से लड़खड़ाया हुआ है, सामाजिक तनाव हालात को और बदतर बनाएगा।” उन्होंने लिखा है कि, “अब यह अच्छी तरह स्थापित हो चुका है कि भारत की अर्थव्यवस्था का संकट इन दिनों निजी क्षेत्र द्वारा नए निवेश में आई कमी के कारण है। निवेशक, उद्योगपति और उद्यमी नई परियोजनाओं को शुरू करने के लिए तैयार नहीं हैं और वे जोखिम नहीं उठाना चाहते।“ उन्होंने लिखा है कि, “सामाजिक व्यवधान और सांप्रदायिक तनाव उनके डर को बढञा रहा है।
डॉ सिंह के मुताबिक आर्थिक विकास का आधार सामाजिक समरसता है, जो इस समय संकट मे है। मनमोहन सिंह ने लिखा है कि, “जब कहीं भी अचानक हिंसा भड़क उठने का खतरा सामने खड़ा हो तो टैक्स दरों में बदलाव, कॉर्पोरेट प्रोत्साहन या सौगातें देने से भी भारतीय या विदेशी व्यवसाय निवेश करने को तैयार नहीं हो सकते। निवेश में कमी का सीधा अर्थ है नौकरियों और आमदनी में कमी जिससे अर्थव्यवस्था में खपत और मांग की कमी होगी। और, मांग में कमी होने से निजी निवेश और घटेगा। यह ऐसा दुष्चक्र है, जिसमें हमारी अर्थव्यवस्था इस समय फंसी हुई है।“
मनमोहन सिंह ने लिखा है कि ये तो खुद को दिए घाव हैं, ऐसे में चीन से निकला कोरोनावायरस स्थितियां और विकट कर रहा है। अभी तक यह स्पष्ट नही है कि इसका फैलाव कितना होगा और विश्व पर इसका कितना असर होगा, लेकिन यह साफ है कि हमें इससे निपटने के लिए पूरी ताकत से तैयार होना होगा। स्वास्थ्य महामारी किसी भी राष्ट्र के लिए सबसे बड़ा खतरा होता है। ऐसे में हम सबको इस खतरे से निपटने और चुनौती का सामना करने के लिए खुद तैयार करना होगा।
उन्होंने लिखा है कि हाल के समय में हमने किसी बड़े स्वास्थ्य संकट का इस तरह सामना नहीं किया है, ऐसे में महत्वपूर्ण है कि हम पूरी सक्रियता से इसे हराने में जुटें।
मनमोहन सिंह ने लेख में कहा है कि, “कोरोनावायरस के प्रभाव का आंकलन करते हुए विश्व बैंक जैसी संस्थाओं ने कहा है कि इससे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर मंदी का संकट आ सकता है। रिपोर्ट्स आ रही है कि इससे चीन की अर्थव्यवस्था और सिकुड़ सकती है। और इस सबका भारत पर भी असर पड़ेगा।“
मनमोहन सिंह ने मौजूदा हालात से निपटने के लिए तीन बिंदु सुझाए हैं:
- सरकार को कोरोनावायरस की रोकथाम के लिए सभी किस्म के प्रयास करते हुए इससे निपटने की तैयारी करनी होगी
- सरकार को नागगरिकता संशोधन कानून वापस लेना चाहिए और देश में फैले नफरत के जहर को खत्म कर राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना चाहिए
- अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए मांग बढ़ाने की जरूरत होगी, जिसके लिए सरकार को एक विस्तृत और प्रभावी वित्तीय मदद की योजना सामने रखनी होगी
उन्होंने आगे लिखा है कि, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश को सिर्फ शब्दों से नहीं बल्कि अपने कृत्यों से आश्वासन देना होगा कि लोगों के सामने जो खतरें हैं उन्हें इसका आभास है और वह इससे उबरने के लिए काम कर रहे हैं। कोरोनावायरस से निपटने के लिए किए जा रहे उपायों को भी उन्हें देश के सामने तुरंत रखना चाहिए।”
उन्होंने लिखा है कि, “गहरे संकट का क्षण भी अवसर का क्षण हो सकता है।“ उन्होंने 1991 के आर्थिक सुधारों की याद करते हुए लिखा है कि कैसे उस समय देश पर भुगतान संतुलन संकट था, खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतें बढ़ी हुई थीं, लेकिन फिर भी व्यापक सुधारों से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली। उन्होंने कहा है कि, “लेकिन इस मौके को वसर में बदलने के लिए हमें पहले विभाजनकारी विचारधारा, क्षुद्र राजनीति और संस्थागत सहनशीलता का सम्मान करना होगा।“
source: NavjivanIndia