Coronavirus: क्रिकेट में कहा जाता है कि हर गेंद बल्लेबाज को नए सिरे से खेलनी होती है। खासकर टेस्ट मैचों में लंच, टी पर होने वाले ब्रेक के बाद टिके हुए बल्लेबाज को नए सिरे से शुरुआत करनी होती है भले ही वह दोहरा शतक लगा चुका हो। शायद अब ऐसा ही कुछ दुनिया के साथ होने जा रहा है। द गार्जियन के अनुसार दुनिया के 199 देश कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं, दुनिया के अधिकांश देशों ने लॉकडाउन का सहारा लिया है या ले रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय यातायात के साथ देशों के अंदर का यातायात थम गया है। ऐसा लग रहा है कि पूरी दुनिया एक ब्रेक पर है।
सभी बड़ी राजनीतिक, सामाजिक और खेल गतिविधियां ठप हैं। यहां तक कि ज्ञात इंसानी इतिहास में धार्मिक गतिविधियां बंद हैं। वेटिकन में पोप धार्मिक शिक्षा नहीं दे रहे हैं तो मुस्लिम धर्म की सबसे पवित्र जगह मक्का को धार्मिक यात्रियों की पहुंच से दूर कर दिया गया है। हिंदुओं के बड़ों के साथ छोटे-छोटे मंदिर तक बंद कर दिए गए हैं। विशेषज्ञ अब सवाल कर रहे हैं कि क्या इस ब्रेक के बाद दुनिया बदल जाएगी। ज्यादातर का जवाब हां में है। आइये जानते हैं कि दुनिया की तस्वीर उससे कैसे बदलेगी जैसी हमने कोरोना वायरस के संक्रमण से पहले देखी थी।
हर बड़ी आपदा के बाद बदली है दुनिया
हमने अब तक देखा है कि हर बड़ी आपदा के बाद दुनिया की राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक समझ व सिद्धांतों में बदलाव आता है। वर्ष 1918 में स्पेनिश फ्लू फैला और दुनियाभर में पांच करोड़ लोग मारे गए। उसके बाद तमाम यूरोपीय देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का विकास हुआ। द गार्जियन के अनुसार ऐसा ही कुछ वर्ष 2001 में जब अमेरिका में 9/11 का हमला हुआ तो पूरी दुनिया में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सिद्धांत कम हुआ। सरकारी एजेंसियां ताकतवर हुईं। आप पर 24 घंटे इलेक्ट्रॉनिक तरीके से निगाह रखने को कानूनी मंजूरी दी गई। एयरपोर्ट से लेकर बैंकों तक की सुरक्षा व्यवस्था हमेशा के लिए बदल गई। इसी तरह वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी के बाद पूरी दुनिया का आर्थिक तंत्र बदल गया। निजी बैंकों और संस्थानों पर कड़ाई की गई। दुनिया में शेयर बाजार और बैंकों के लिए बनाई गईं नोडल संस्थाएं मजबूत हुईं और वे नियामक के साथ कानून का उल्लंघन करने पर कार्रवाई करने वाली संस्थाओं में बदल गईं। आर्थिक अपराधों पर बहुत सख्त सजाओं की व्यवस्था हुई।
चीन को लेकर बदलेगा दुनिया का नजरिया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हों या इजरायल के प्रधानमंत्री नेतान्याहू, सभी कोरोना वायरस को चीन का मानव निर्मित वायरस बता रहे हैं। कुछ देश ऐसा नहीं भी मानते हैं तो ज्यादातर मानते हैं कि चीन की लापरवाही से संक्रमण फैला। आम लोग भी चीन के लोगों के खान-पान की आदतों का विरोध कर रहे हैं। ब्रिटेन जैसा उदारवादी देश भी इससे चिंतित है। दुनिया के 35 देशों में चीन के नागरिकों के खिलाफ नस्लीय हमलों की खबरें आई हैं। ऐसे में चीन की छवि दुनिया में शायद हमेशा के लिए बदल गई है।
शारीरिक दूरी का सिद्धांत अब हमेशा के लिए
दुनियाभर में सौहार्द और प्रेम जताने के लिए हाथ मिलाने से लेकर गले मिलने तक के रिवाज कोरोना वायरस के फैलने से पहले आम थे। यूरोप हो या सऊदी अरब, कोरोना वायरस के कारण सभी शारीरिक दूरी का सिद्धांत मान रहे हैं। विशेषज्ञों का मत है कि इंसानी इतिहास में शारीरिक दूरी के सिद्धांत को मान्यता मिल गई है। यह आगे तक कायम रहेगा। अहम है कि भारतीय परंपरा ने हमेशा से शारीरिक दूरी के सिद्धांत को महत्व दिया है।
अप्रवासियों पर अब होगी सख्ती
अमेरिका हो या ब्रिटेन, तमाम पश्चिमी देशों में अप्रवासियों का स्वागत होता रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अब राष्ट्रपति ट्रंप को अमेरिका में अप्रवासियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का मौका मिलेगा। पोलैंड के प्रधानमंत्री ने तो ऐसा घोषणा कर दी है। ऐसा ही कुछ इटली, स्पेन और फ्रांस में भी दिख सकता है, जो कोरोना से भयंकर रूप से प्रभावित हैं।
कमजोर होंगे लोकतांत्रिक अधिकार
चीन ने जिस तेजी से लॉकडाउन किया और सख्त कदम उठाकर कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में जीत हासिल की है, उससे तमाम देश प्रभावित हैं। वहीं इटली, स्पेन जैसे खुले समाजिक पहचान वाले देश बड़े कब्रिस्तान के रूप में बदल रहे हैं। ऐसे में विशेषज्ञों को अंदेशा है कि सरकारें अपने हाथ में ज्यादा ताकत लेंगी और लोकतांत्रिक अधिकार कमजोर होंगे।
सुधरेगी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत
यूरोप समेत अमेरिका में जिस तरह स्वास्थ्य सेवाएं खुद को कोरोना वायरस से लड़ने में कमजोर पा रही हैं, उससे लोगों में बहुत नाराजगी है। सोशल मीडिया पर पूरी दुनिया के लोग चीन की स्वास्थ्य सेवाओं की तारीफ कर रहे हैं। ऐसे में विशेषज्ञों को उम्मीद है कि पूरी दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत होंगी।
पर्यटकों के प्रति बदलेगा नजरिया
कोरोना वायरस के संक्रमण के पहले तक पूरी दुनिया में पर्यटकों को काफी महत्व दिया जाता था, उन्हें आर्थिक आय का बड़ा जरिया माना जाता था। इस वायरस का संक्रमण मुख्य रूप से पर्यटकों से की फैला, ऐसे में आशंका है कि अब शायद ही दुनिया में पर्यटकों का स्वागत पहले की तरह होगा।
धर्म-आस्था होगी प्रभावित
विशेषज्ञ मानते हैं कि कोरोना वायरस के कारण जिस तरह धार्मिक स्थलों को बंद किया गया और बड़े-बड़े धार्मिक नेता संक्रमित हो गए या फिर सार्वजनिक जीवन से गायब हो गए, उससे धर्म-आस्था की जड़ें भी कुछ कमजोर पड़ेंगी। खासकर पश्चिमी देशों में, जहां पहले से ही धार्मिक रूप से उदासीन लोगों की संख्या काफी ज्यादा है।
बदल जाएगा अर्थतंत्र
दुनिया का अर्थतंत्र बहुत लचीला रहा है, उसने अब तक के तमाम खराब हालात का मुकाबला किया है। चाहे वह 1930 के दशक में आयी मंदी हो या कोल्ड वार या फिर 1990 के खराब हालात। 2008 की वैश्विक मंदी को भी वैश्विक अर्थतंत्र ने झेल लिया था। विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना ने जैसे वैश्विक अर्थतंत्र को घुटने पर ला दिया है, उससे इससे जुड़े लोगों ने बहुत कुछ सीखा होगा। हमें जल्द ही बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे।
स्वास्थ्य सेवाओं में ऐतिहासिक बदलाव हुआ
1858 में अमेरिका में येलो फीवर के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में बदलाव हुआ। 2001 के बाद देश, विदेश से आने वालों का डाटा बेस बनाने लगे, अमेरिका में लोगों को स्क्रीनिंग से गुजरना पड़ता है। 14वीं सदी में यूरोप में रहस्मय बुखार (ब्लैक डेथ) फैला था, इस दौरान दूसरी नस्लों के लोगों का खात्मा कर दिया गया।
बदलेगी पश्चिमी देशों की जीवनशैली
पूरी दुनिया को पश्चिमी देशों की खुली जीवनशैली ने प्रभावित किया है। मगर यूरोपीय जीवनशैली के चारों स्तंभ देशों इटली, फ्रांस, ब्रिटेन और स्पेन कोरोना से लड़ रहे हैं। सभी जगह कोरोना के संक्रमण फैलने का कारण वहां की शराब और रेस्तरां कल्चर आधारित जीवनशैली को माना गया। जहां 70 फीसद लोग बार में ही शराब पीते हैं और 15 वर्ष की आयु के बाद कोई भी शराब पी सकता है। साथ ही सामूहिक रूप से रेस्तरां में खाना-खाने का कल्चर भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि शायद इतना खुलापन अब न रहे और समाज खुद को बदल लेंगे।
source: Jagran.com