भारतीय जनता पार्टी ने अपनी स्थापना के बाद और पहले इसके नेताओं ने सड़क से लेकर सदन तक जबरदस्त संघर्ष किया। इसी संघर्ष का नतीजा है कि आज भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी है। इस पार्टी ने राजनीति में आए उतार-चढ़ाव को बेहद करीब से देखा है। लंबे अंतराल के बाद आज ये सत्ता के उस शिखर पर है जहां पहुंचने का का सपना इसके संस्थापक डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने संजोया था। 1951 में उन्होंने इसकी नींव रखी थी, लेकिन तब इसका नाम ये ना होकर भारतीय जनसंघ हुआ करता था। इसे व्यापक रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस की राजनीतिक शाखा के रूप में जाना जाता था। इस संगठन का मूल मकसद भारत की हिंदू संस्कृति की पहचान दुनिया से कराना है।
जनसंघ ने अपना पहला अभियान जम्मू और कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय को लेकर छेड़ा था। उस वक्त जम्मू कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहां जाने के लिए भारतीयों को परमिट लेना पड़ता था। लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसका विरोध किया और 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया गया, जहां 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद जनसंघ का नेतृत्व दीनदयाल उपाध्याय और फिर अटल बिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के हाथों में आया। 1952 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ को तीन सीटों पर जीत हासिल हुई थी। 1967 तक जनसंघ संसद में अल्पमत में ही रहा। जनसंघ की कार्यसूची और मांगों में देश के सभी नागरिकों को समा अधिकार, गोहत्या पर प्रतिबंध, जम्मू एवं कश्मीर के लिए दिया विशेष दर्जा खत्म करना शामिल था। 1967 तक जनसंघ ने कुछ दूसरे दलों के साथ मिलकर अपनी स्थिति को देश के कुछ राज्यों में और मजबूत किया।
1975 में प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लागू किया तो इसके खिलाफ जबरदस्त आंदोलन शुरू किया। जिसके चलते सत्ता पक्ष ने हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में ठूंस दिया। इसमें जनसंघ के बड़े नेता भी शामिल थे। 1977 में आपातकाल के समापत होने के बाद आम चुनाव कराए गए। यह वो वक्त था जब कुछ छोटे दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया, जिसमें जनसंघ भी शामिल था। इसका मूल उद्देश्य चुनावों में इंदिरा गांधी को हराना था। इस मकसद को पाने में पार्टी कामयाब रही और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। इस सरकार में अटल बिहारी बाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। लेकिन ये सरकार अपना कार्यकार पूरा करने से पहले ही मोरारजी देसाई के इस्तीफा देने के बाद गिर गई। लय कार्यभार मिला। 1980 में देश एक बार फिर आम चुनाव के मुहाने पर खड़ा हो गया था।
1980 में जनता पार्टी में विलय हो गया और भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ। इस पार्टी के कई चेहरे पुराने ही थे, केवल नाम बदला था। इस पार्टी के पहले अध्यक्ष अटल बिहार वाजपेयी थे। हालांकि पार्टी को 1984 के चुनाव में केवल दो सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। यहां पर कांग्रेस को इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद सहानुभूति की लहर का फायदा हुआ था और कांग्रेस ने रिकार्ड सीटों के साथ जीत हासिल की थी।
90 के दौर में पार्टी ने रामजन्म भूमि का मुद्दा उठाते हुए इसमें पूरी ताकत झोंक दी थी। आडवाणी की रथयात्रा से पूरे देश का राजनीतिक माहौल उफान पर था। इस पार्टी को फायदा भी हुआ और 1996 के चुनाव में पार्टी देश की संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई थी। इस सराकर के मुखिया के तौर पर वाजपेयी ने शपथ तो जरूर ली लेकिन तीन दिन बाद ही उनकी सरकार गिर गई। 1997 में गठबंधन सरकार का दौर शुरू हुआ। भाजपा ने विभिन्न दलों के साथ मिलकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण किया तो कांग्रेस भी इसी मार्ग पर आगे बढ़ निकली। दोबारा हुए चुनाव में वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बने लेकिन इस बार उनकी सरकार 13 महीनों के बाद फिर गिर गई। लेकिन इसके बाद जो आम-चुनाव हुए उसमें राजग को पूर्ण बहुमत मिला और तीसरी बार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के मुखिया बने।ये पहला मौका था जब किसी गैर कांग्रेसी सरकार ने केंद्र में अपना कार्यकाल पूरा किया था। हालांकि इसके बाद भी 2004 के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और केंद्र कांग्रेस की सरकार बनी। करीब दस वर्षों तक सत्ता का इंतजार करने के बाद 2014 के चुनाव में भाजपा ने जबरदस्त वापसी की और केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, जिसको आज तक विपक्ष सही मायने में चुनौती भी नहीं दे सका है। केंद्र में सत्ता संभालने के बाद धीरे-धीरे पार्टी का परचम देश के अधिकतर राज्यों में लहराता दिखाई दिया।
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