कोरोना वायरस जिस तेजी से दुनिया के विभिन्न देशों में फैला है उस तरह के उदाहरण इतिहास में काफी कम देखने को मिलते हैं। चीन से निकलकर 53 देशों को अपनी चपेट में ले चुका कोरोना की मार पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ी है। इसकी वजह से चीन का ही नहीं पूरी दुनिया का कारोबार धड़ाम से गिर गया है। मूडीज की रिपोर्ट तक में भी इस पर चिंता जताई जा चुकी है। चीन के बाद दक्षिण कोरिया जापान और ईरान में इसके मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। कोरोना के इस कदर महामारी बनने के पीछे जानकार इसके इलाज का न होना तो मानते ही हैं लेकिन उनका ये भी मानना है कि इसको लेकर चीन की तरफ से इसकी खबरों को जिस तरह से दबाया गया वह नीतियां भी इसमें बराबर की दोषी है।
आपको बता दें कि चीन में सबसे पहले जिस डॉक्टर ली वेनलियांग ने कोरोना वायरस की पुष्टि की थी वो खुद इसकी चपेट में आने से मौत के मुंह में जा चुका है। सोशल मीडिया पर उनकी मौत को लेकर सरकार पर कई तरह के आरोप भी लगे। अब इन आरोपों की जांच भी शुरू हो गई है। लेकिन ये सच है कि डॉक्टर ली की मौत से सरकार की छवि पर दाग जरूर लगा है। सोशल मीडिया पर कई लोगों का कहना था कि सरकार ने वायरस से जुड़ी खबरों को छिपाने का काम किया और सही तथ्यों को सामने आने से रोका। लंदन के किंग्स कालेज के प्रोफेसर हर्ष वी पंत फिलहाल इसको सर्वव्यापी महामारी नहीं मानते हैं। लेकिन वो इतना जरूर कहते हैं दुनिया को इसके लिए तैयार रहना होगा।
प्रोफेसर पंत का कहना है कि इसकी वजह से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर दबाव है। ये दबाव राष्ट्रपति शी चिनफिंग पर भी दिखाई दिया है। सबसे बड़ा दबाव तो इसकी वजह से कारोबार को हो रहे नुकसान को कम करने का ही है। दूसरा दबाव सरकार की छवि को सुधारने का भी है, जो इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर खराब हुई है। तीसरी और अंतिम दबाव इस वायरस का ईलाज खोजने का भी है, ताकि दोबारा ये इतना विकराल रूप न ले सके।