क्या आप चाभियां रखकर बाद में उन्हें तलाशते फिरते हैं? क्या आप उन व्यक्तियों में से हैं जो बैंक से पैसा निकालने, बिजली-पानी, फीस और फोन के बिल जमा करने की तारीख भूल जाते हैं? क्या आपको जन्मदिन या विवाह की वर्षगांठ की शुभकामनाएं देना भूल जाने के कारण जीवनसाथी की नाराजगी झेलनी पड़ती है? अगर ऐसा है तो परेशान न हों, स्मृति लोप अथवा याद्दाश्त का कमजोर पड़ जाना एक मामूली सी मानसिक समस्या है जिसका सामना अधिकतर लोगों को करना पड़ता है। अच्छी बात यह है कि कुछ सरल मनोवैज्ञानिक उपायों और आहार में परिवर्तन से इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
भूल भी जाता है दिमाग: वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. एल. के. सिंह के मुताबिक, ‘दिमाग याद रखता है तो भूल भी जाता है। दरअसल याद्दाश्त इस बात पर बहुत निर्भर करती है कि आप अपने मस्तिष्क को किसी चीज पर किस प्रकार केंद्रित करते हैं। उदाहरणस्वरूप आप किसी नई जगह जाएं तो रास्ते ढूंढना मुश्किल होता है, परंतु अगर यह पैटर्न बार- बार दोहराया जाए तो दिमाग आसानी से रास्तों को नैवीगेट करने लगता है। मतलब यह है कि हमें अपने लिए आवश्यक जानकारियों को मस्तिष्क में कई बार भरने की आवश्यकता होती है। यदि कभी याद्दाश्त धोखा दे जाए तो हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है, लेकिन जब यह कार्य बार-बार होने लगे तो कुछ सरल अभ्यासों तथा जीवनशैली में सुधार की जरूरत है। ’
सोने से पहले दोहराएं: मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति लोप को अत्यंत साधारण सी मानसिक समस्या माना है जिसका समाधान भी उतना ही सरल है। उनके अनुसार किसी चीज को याद रखने के लिए सबसे अच्छा समय सोने से पहले का है। सोने से पहले पढ़ी अथवा याद की गई बात मस्तिष्क तेजी से ग्रहण करता है। इस समय पढ़ी अथवा याद की गई बात दिन के किसी और समय की अपेक्षा मस्तिष्क में अधिक स्थिर रहती है।
सही समय पर सो जाएं: रात में देर से सोने और मोबाइल फोन में मगन रहने से न केवल आंखों के नीचे काले धब्बे और शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट आती है, बल्कि मस्तिष्क की क्षमता भी न्यून हो जाती है। ‘अर्ली टु बेड एंड अर्ली टु राइज, मेक्स ए मैन हेल्दी एंड वाइज’ की अंग्रेजी कहावत इस मामले में बिल्कुल ठीक बैठती है। एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार देर रात से सोने वाले लोगों में सामान्य व्यक्तियों की तुलना में स्मृति लोप का प्रतिशत 28 गुना अधिक होता है। डॉ. एल. के. सिंह बताते हैं, ‘पूरा आराम न मिलने से ऐसी जीवनशैली के आदी व्यक्तियों के मस्तिष्क की कोशिकाओं में तेजी से वृद्धि और कार्यक्षमता बढ़ाने की गति धीमी हो जाती है। अब यह आपके ऊपर है कि आपको देर रात्रि तक चलने वाली पार्टियां, स्मार्टफोन पर लगातार चलती वेबसीरीज या चैटिंग अधिक पसंद है अथवा अपना मानसिक स्वास्थ्य!’
सकारात्मक वातावरण आवश्यक: मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र, कानपुर में मंडलीय मनोवैज्ञानिक के रूप में कार्यरत डॉ. नरेश चंद्र गंगवार के अनुसार, ‘स्मृति को सुदृढ़ रखने के लिए सात्विक जीवन और सकारात्मक वातावरण बहुत जरूरी है। घर अथवा दफ्तर में कलह तथा चीख-पुकार का माहौल बना रहे तो अच्छाखासा आदमी भी भळ्लक्कड़ हो जाएगा।’ वे अपने व्यक्तिगत अनळ्भवों से कहते हैं, ‘जैसा कि श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है (देखें ऊपर बॉक्स) , मैंने भी वही पाया है कि जीवन में संतोष की भावना, सबसे अच्छा व्यवहार और कर्म को अपना कर्तव्य मानकर करने से ही मन-मस्तिष्क शांत रहता है और सबसे बढ़िया परिणाम देता है।’ डॉ. एल. के. सिंह भी इस संदर्भ में सहमति जताते हैं, ‘हर्ष और विषाद, दोनों ही मस्तिष्क को व्यथित करते हैं। चीजों के पीछे भागने से, उनके फल की प्रतीक्षा से, कोई परिणाम हमारे मळ्ताबिक ही क्यों नहीं आ रहा है की भावना से, मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। स्थिर चित्त रहें और घटनाओं को ईश्वर को समर्पित करते चलें तो मानसिक स्वास्थ्य में विकार की आशंकाएं न्यूनतम हो जाती हैं। ’
भाव, भावना और भोजन का संतुलन : श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार ईश्वर को कार्य का समर्पण, निर्मल-संतुलित मन तथा सात्विक आहार का सेवन व्यक्ति को स्थिर चित्त का स्वामी बनाता है। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि संतुलित मस्तिष्क और स्मृति मन के स्थिर और शांत होने से ही संभव है और इसके लिए जीवन में उतारने चाहिए गीता के यह तीन स्वर्णिम श्लोक…
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सुोऽस्त्वकर्मणि।।
कर्म करने मात्र में तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी नहीं। तुम कर्मफल के हेतु वाले मत होना और अकर्मण्यता (आलस्य) में भी तुम्हारी आसक्ति न हो।
(अध्याय 2 श्लोक 47)
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कार: समदु:खसुख: क्षमी।।
भूतमात्र (सभी जीवों) के प्रति जो द्वेषरहित है तथा सबका मित्र तथा करुणावान् है; जो ममता और अहंकार से रहित, सुख और दुख में सम और क्षमावान् है
(अध्याय 12 श्लोक 13)
आयु:सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धना:।
रस्या: स्निग्धा: स्थिरा हृद्या आहारा: सात्त्विकप्रिया:।।
आयु, सत्त्व (शुद्धि), बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले एवं रसयुक्त, स्निग्ध, स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले आहार अर्थात भोज्य पदार्थ सात्विक पुरुषों को प्रिय होते हैं।
(अध्याय 17 श्लोक 8)
मस्तिष्क को भी चाहिए व्यायाम : शरीर के अन्य भागों की भांति मस्तिष्क को भी लगातार व्यायाम की आवश्यकता होती है और सही ढंग से ऐसा करने पर याद्दाश्त के कमजोर होने पर काबू पाया जा सकता है। मस्तिष्क की क्षमता को पुुुन: जागृत करना बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं है। अगर आप चाभियां भूल जाते हैं तो उन्हें एक नियत की-बोर्ड या डलिया में रखने का अभ्यास करें। बिल जमा करने की तारीखें या जन्मदिन भूल रहे हैं तो फाइल और व्यक्तिगत पत्रावली बनाने का अभ्यास करें। कभी ऐसा लगे कि कोई चीज गुम गई है या कहीं रखकर भूल गए हैं तो परेशान न हों, शोरगळ्ल न मचाएं। कुछ देर शांति से ठहरें, विश्रांत होने का प्रयास करें और आप पाएंगे कि अरे वह चीज कितनी आसानी से याद आ गई। यह अभ्यास धीरे-धीरे आपकी याद्दाश्त को बेहतर बनाते जाएंगे और आप पाएंगे कि अब बिना की-बोर्ड, फाइल, डायरी या अलार्म के भी आपका मस्तिष्क खूब सजग होता जा रहा है और अब आप यूं ही चीजें भी नहीं खो रहे हैं।
source: Jagran.com