दिल्ली दंगों के लिए बाहर से लोग बुलाए गए थे जिन्हें स्कूलों में ठहराया गया था। ये लोग शिफ्टों में जाकर लूटपाट और आगजनी करते थे। यह खुलासा किया है दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों पर जारी अपनी रिपोर्ट में।
“दिल्ली के उत्तर पूर्वी जिले में हुए सांप्रदायिक दंगे एक तरफा थे और पूरी तरह योजना बनाकर किए गए ताकि मुसलमानों के घरों और दुकानों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सके। इसमें स्थानीय लोगों की मदद ली गई थी। इसके अलावा कुछ दंगाइयों को स्थानीय स्कूलों में ठहराया गया था और उनके खानपान की व्यवस्था की गई थी।“ यह बात दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दिए गए शुराती अनुमानों में कही है।
हालांकि आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने दिल्ली दंगों के लिए केंद्र या दिल्ली पुलिस पर कोई उंगली नहीं उठाई है, लेकिन सरकार के अल्पसंख्यक आयोग, महिला और बाल अधिकार आयोग इस बारे में लगातार सवाल उठाकर जवाबदेही की बात कर रहे हैं।
अल्पसंख्यक आयोग की टीम ने 2 मार्च को दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया था। इसके बाद एक फैक्ट फाइंडिंग टीम (तथ्य हासिल करने वाली टीम) का गठन किया गया जो दंगों के दौरान हुए मानवाधिकार उल्लंघन की विस्तृत रिपोर्ट पेश करेगी।
अँग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर के मुताबिक अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों ने बुधवार को अपनी जो रिपोर्ट जारी की है उसमें बहुसंख्यक समुदाय पर हमले के भी कई मामलों का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि हिंदु और मुस्लम घरों और दुकानों को कई जगह नुकसान पहुंचाया गया, लेकिन ऐसे इलाके भी हैं जहां सिर्फ मुसलमानों के घरों, दुकानों और फैक्टरियों आदि को निशाना बनाया गया।
रिपोर्ट मे कहा गया है कि, “भजनपुरा में हमें एक मुसलमान की दुकान मिली, जो एक ट्रेवल एजेंसी थी और एक मोटरसाइकिल का शोरूम था, इसे लूटकर आग लगा दी गई, लेकिन इसके नजदीक ही हिंदुओं की दुकानों को छुआ तक नहीं गया….खजूरी खास की गली नंबर 5 में रहवासियों ने बताया कि हिंसा 23 फरवरी की रात में कपिल मिश्रा के अल्टीमेटम देने के बाद देर रात शुरु हुई…”
रिपोर्ट में एक जगह कहा गया है कि, “हजूरी एक्सटेंशन में 3/51 नंबर मकान के जमील अहमद का कार रिपेयर का गैरेज था, यहां 7 कारों, 6 ऑटोरिक्शा और 9 मोटरसाइकिलों को जला दिया गया। जमील ने बताया कि हिंसा और आगजनी से कुछ घंटे पहले हिंदू अपनी कारें ले गए थे।”
रिपोर्ट में हालांकि एक आईबी कर्मचारी की हत्या के आरोपी आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन (उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया है) का सरसरे तौर पर जिक्र है, लेकिन सीधे तौर पर कपिल मिश्रा के बयान को दंगों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। इससे पहले दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग कपिल मिश्रा के खिलाफ की गई कार्रवाई की एक्शन टेकिन रिपोर्ट की मांग कर चुका है।
आयोग के आंकलन में तीन स्कूलों को भारी नुकसान का जिक्र है और कहा गया है कि दूसरे इलाकों से (बाहर से) आए लोगों को स्कूलों में ठहराया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, “शिव विहार में टीम ने पाया कि दो स्कूलों पर गुंडों का कब्जा था, ये सभी बाहर से आए हुए थे, ऐसे करीब 2000 लोग बाहर से आए और इन दो स्कूलों में 24 घंटे से ज्यादा वक्त तक रहे। ये लोग छोटे ट्रकों में सवार होकर 2-3 घंटे की शिफ्ट में बाहर जाते थे और लूटपाट और आगजनी कर वापस आ जाते थे। इन लोगों के लिए खाना स्कूल में ही लाया जा रहा था। इससे साफ जाहिर है कि इन लोगों को स्थानीय लोगों की मदद हासिल थी।”
ये दोनों से एक स्कूल हिंदूओं का है जिसमें एक कांग्रेस नेता भी हैं, और दूसरा एक मुस्लिम का है। स्कूल में ठहरे लोग स्कूलों की छत पर चढ़कर दूसरे तरफ के गुट पर पत्थरबाजी करते थे। रिपोर्ट के मुताबिक, “शिवपुरी में मुसलमानों की कम आबादी है और यहीं सबसे ज्यादा हिंसा हुई। हमने पाया कि मुसलमानों के घरों को चुन-चुनकर जलाया गया, जिससे काफी नुकसान हुआ। इस इलाके की औलिया मस्जिद को आग लगा दी गई। मस्जिद के फर्श पर बेशुमार मलबा पाया गया और दो गैस सिलेंडर भी मिले। संयोग से ये सिलेंडर फटे नहीं। यहां ज्यादातर घरों को उन गैस सिलेंडर से उड़ा दिया गया जो दूसरे घरों से लाए गए थे।”
रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि, “बिना बड़ी सहायता के दंगा प्रभावित लोग अपनी जिंदगी को पटरी पर नहीं ला पाएंगे। हमारा मानना है कि दिल्ली सरकार ने जिस मुआवज़े का ऐलान किया है वह नाकाफी है।”
इससे पहले दिल्ली महिला आयोग ने भी दंगा प्रभावित इलाकों में पुलिस की भूमिका की जांच की मांग की थी।
source: Jagran.com