उत्तर पूर्वी दिल्ली में हजारों लोग बेघर हो गए हैं, और रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। लेकिन न तो केजरीवाल सरकार और न ही केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से कोई मदद मिली है। यह बात सिविल सोसायटी के एक समूह ने इलाके का दौरा करने के बाद रविवार को जारी अपनी रिपोर्ट में कही है।
उत्तर पूर्वी दिल्ली में तीन दिन तक जारी रही हिसा के बाद अब जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। इन दंगों में ताजा जानकारी के मुताबिक कम से कम 42 लोगों की जान गई है और 200 से ज्यादा जख्मी हुए हैं। हिंसा और लूटपाट के कारण दिल्ली के इस इलाके के हजारों लोग बेघर हो गए हैं। लेकिन हिंसा थमने के बाद लोगों को राहत और बचाव मुहैया कराने में केंद्र और दिल्ली सरकार पूरी तरह नाकाम साबित हुई हैं। हकीकत यह है कि इन इलाकों में सरकार की मौजूदगी नजर ही नहीं आती। यह निष्कर्ष है उस रिपोर्ट का जो सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह ने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा करने के बाद जारी की है।
रविवार को जारी हुई इस रिपोर्ट को सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, एनी राजा, पूनम कौशिक, गीतांजलि कृष्णा और अमृता जौहरी ने तैयार किया है। रिपोर्ट के मुताबिक इस समूह ने उत्तर पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा, चमन पार्क और शिव विहार इलाकों का दौरा किया और हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों से मिलकर लोगों की दिक्कतें जानने की कोशिश की।
रिपोर्ट के मुताबिक किसी भी सरकारी एजेंसी ने लोगों को राहत देने का काम शुरु नहीं किया है। कहा गया है कि केंद्र और दिल्ली सरकार दंगों से प्रभावित लोगों को जो भी फौरी राहत की जरूरत है, मुहैया कराने में नाकाम साबित हुई हैं। रिपोर्ट बताती है कि न तो केंद्र सरकार और न ही दिल्ली सरकार की तरफ से किसी किस्म का कोई राहत शिविर इन इलाकों में लगाया गया है।
समूह का कहना है कि कुछ निजी लोग अपनी तरफ से लोगों को राहत सामग्री पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकारी एजेंसी या उसके प्रतिनिधि राहत सामग्री बांटने में हाथ बंटाते नजर नहीं आए। लोगों का कहना है कि जो भी राहत आ रही है वह गुरुद्वारों, चर्चों या निजी लोगों की तरफ से आ रही है।
समूह का आंकलन है कि तीन दिन की भीषण हिंसा के बाद दिल्ली सरकार द्वारा घोषित की गई राहत लोगों की रोजमर्रा की जरूरते तक पूरी नहीं कर सकती। समूह ने केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों से लोगों को सम्मानपूर्वक राहत पहुंचाने की अपील की है। साथ ही अनुरोध किया है कि सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री, केंद्र सरकार के मंत्रियों आदि को इलाके का दौरा कर लोगों के बीच भरोसा कायम करना चाहिए।
समूह ने निम्न मांगे सरकार के सामने रखी हैं:
- ऐसे लोग जिनके घर तबाह हो गए हैं, उनके लिए सुरक्षित रहने का इंतजाम हो
- 24 घंटे चलने वाले कम्यूनिटी किचन के जरिए लोगों को भोजन मुहैया कराया जाए
- दूध, सब्जी और अन्य जरूरी सामान सस्ते दामों पर मुहैया कराने के लिए मोबाइल वैन तैनात की जाएं
- इलाके में 24 घंटे मेडिकल कैंप लगाए जाएं जिनमें स्त्री और बाल रोग विशेषज्ञ भी शामिल हों। साथ ही मनोचिकित्सकों को भी तैनात किया जाए
- सभी प्रभावित लोगों को साफ कपड़े मुहैया कराए जाएं
- नष्ट हो चुके सरकारी कागज़ों को दोबारा हासिल करने के लिए विशेष कैंप का आयोजन किया जाए
- मुआवज़ा आदि हासिल करने के लिए लीगल डेस्क लगाई जाएं
- जितने भी धार्मिक स्थलों को नुकसान हुआ है उन्हें दोबारा बनाने में मदद की जाए
इस समूह ने जिन इलाकों का दौरा किया, वहां की क्षेत्रवार स्थिति का भी आंकलन किया है।
चमन पार्क
रिपोर्ट के मुताबिक मूलत: शिव विहार के मुस्लिम समुदाय के करीब एक हजार लोगों ने नजदीक के चमन पार्क में शरण ले रखी है। समूह ने ऐसे ही कुछ घरों का दौरा किया, जिनमें ज्यादातर बच्चे और महिलाएं थीं। ये लोग आमतौर पर जमीन पर ही बैठे थे। इनमें से एक कमरे में मेडिकल कैंप चल रहा है। यह घर वहीं के कुछ लोगों के हैं जिन्होंने दंगा प्रभावितों के लिए अपने दरवाज़े खोले हैं और लोगों को इमरजेंसी मेडिकल सहायता दे रहे हैं।
यहां रह रहे लोग अब भी बहुत डरे हुए हैं। इनका कहना है कि जब लोग शिव विहार में अपने घरों को गए ताकि कागजात वगैरह ला सकें, तो उन पर हमले किए गए। हालत यह है कि कुछ परिवारों के पास तो पहने हुए कपड़ों के अलावा कुछ बचा ही नहीं है। इन परिवारों के बहुत से बच्चों की बोर्ड की परीक्षा भी छूटी है।
वहीं इस समूह की मुलाकात एक ऐसे युवा से हुई जिसे भीड़ ने नाम पूछर मारा-पीटा। उसके सिर में टांके लगे हैं। लेकिन वह डर के मारे आंख का इलाज कराने अब अस्पताल तक नहीं जाना चाहता।
लोगों का कहना है कि औलिया मस्जिद और दो मदरसों को आग के हवाले कर दिया गया था। लोगों का कहना है कि उन्होंने भीड़ के पास पेट्रोल बम, बंदूकें और लोहे की रॉस देखीं। उस दौरान पुलिस को 100 नबंर पर की गई कॉल का कोई जवाब नहीं मिला।
शिव विहार चूंकि मिली-जुली आबादी वाला इलाका है, ऐसे में लोगों का कहना था कि भीड़ में दिखे सारे चेहरे बाहर के ही लगते थे और उनमें कोई भी स्थानीय व्यक्ति नहीं था। ज्यादातर लोग अब शिव विहार वापस जाने में घबरा रहे हैं।
शिव विहार
इस समूह ने शिव विहार की गलियों का दौरा किया , जो अब एक भुतहा शहर जैसा लगता है। हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदाय के हजारों लोग अपने घर छोड़कर कही चले गए हैं। इस इलाके में कोने-कोने में रैपिड एक्शन फोर्स के जवान तैनात हैं। घरों की दीवारें आगजनी से उठे धुएं से काली पड़ चुकी हैं, जले हुए वाहनो, घरेलू सामान, दुकानों का फर्नीचर जहां-तहां बिखरा पड़ा है। अलमारियों और डेस्कों के जरिए बैरिकेड बनाए गए हैं, जिससे हिंसा की भयावहता स्पष्ट होती है।
इस इलाके में समूह ने कुछ हिंदू परिवारों से बात की। ज्यादातर का कहना था कि उन्होंने हिंसा के दौरान करीब को जौहरीपुर और दूसरे इलाकों में पनाह ली थी। उनका कहना है कि मुस्लिम तो घर छोड़कर चले गए थे। इसी इलाके के मिथिलेश और सुनीता ने समूह को बताया कि वे 25 फुटा रोड पर गली नंबर 14 में मिठाई की दुकाने चलाते थे। उनका कहना था कि हथियारबंद भीड़ गली के दोनों तरफ से आई और आगजनी शुरु कर दी। लोगों पर हमले किए, घरों के आग लगाई। फायर ब्रिगेड को की गई कॉल का कोई नतीजा नहीं निकला।
सुनीता ने बताया कि उनका घर जलाया तो नहीं गया फिर भी वे बुधवार (26 फरवरी) सुबह दूसरी जगह चले गए थे। वापस आने पर अब पता चला है कि उनके घरों में भी तोड़फोड़ हुई है। सुनीता का कहना है कि ऐसा लगता है कि दंगाई बाहर से आए थे। इस इलाके में रहने वाले हिंदुओं ने बताया कि एसडीएम ने यहां का दौरा किया था और जानकारी नोट करके ले गए हैं।
भजनपुरा
सीलमपुर मेट्रो स्टेशन से भजनपुरा की तरफ जाते हुए समूह को ज्यादातर दुकाने बंद मिलीं। इसके अलावा कई स्कूली बसें, ट्रक, दूसरे वाहन आदि जले हुए दिखाए दिए। इसी रास्ते पर जला हुआ पेट्रोल पंप भी दिखा। भजनपुरा के मेन रोड पर ही समूह ने पुलिस पोस्ट से 10 फुट की दूरी पर वह मजार भी देखा जिसे आग लगा दी गई थी।
इस इलाके में बाएं हाथ की पहली तीन दुकाने जली हुई मिलीं। समूह ने इन तीन में से दो दुकानों के मालिक भूरा और आजाद से मुलाकात की। इनमें से एक आजाद चिकन सेंटर है, एक फल की दुकान है और एक पीनट्स आदि बेचने की दुकान है। इस पूरे मार्केट में सिर्फ इन्हीं तीन दुकानों को आग लगाई गई। भूरा और आजाद ने बताया कि इन दुकानों को भीड़ ने दोपहर में ढाई बजे के आसपास आग लगाई। दुकानों के ऊपर ही इनकी रिहायश थी, उसमें भी आग लग गई। उन्होंने समूह को बताया कि जब वे अपनी दुकानों में लगी आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे तभी आंसू गैस के गोले छोड़े जाने लगे थे। जान बचाने के लिए वे लोग घर के पिछवाड़े में महिलाओं और बच्चों के साथ 13 फुट ऊंची दीवार से कूदकर भागे थे।
इनका कहना था कि वहां करीबब 8-10 पुलिस वाले थे, लेकिन उन्होंने भीड़ को रोकने की कोई कोशिश नहीं की। इन लोगों का सबकुछ जल चुका है। इन्हें दिल्ली सरकार की मुआवजे की योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इन दोनों ने बताया कि उनके दादा बुंदू खान सेना में नौकरी करते थे।
source: NavjivanIndia